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(अपडेट) पं. नेहरू ने छल से कराया था संविधान में अनुच्छेद 370 का समावेशः अर्जुन राम मेघवाल

पुस्तक लोकार्पण समारोह में बाएं से प्रभात कुमार अर्जुन राम मेघवाल न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और किशोर मकवाणा

नई दिल्ली, 25 नवंबर (Udaipur Kiran) । केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल का कहना है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने न केवल संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि यह भी पूरी तरह से सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि राष्ट्र की एकता और अखंडता सर्वोपरि रहे। नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के सभागार में सोमवार को किशोर मकवाणा की पुस्तक– विद्यार्थियों के लिए भारत का संविधान का लोकार्पण करते हुए उन्होंने यह बात कही। पत्रकार और लेखक, वर्तमान समय में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष किशोर मकवाणा ने बहुत सरल भाषा में संविधान बनने की प्रक्रिया और संविधान के महत्व को इस पुस्तक में समाहित किया है।

अर्जुन राम मेघवाल ने लेखक की सराहना करते हुए कहा कि यह पुस्तक विद्यार्थियों के लिए है और मेरी नजर में हर वह व्यक्ति जीवन भर विद्यार्थी रहता है जिसमें कुछ जानने और सीखने की ललक होती है। इसलिए इस पुस्तक को हर किसी को पढ़ना चाहिए। केन्द्रीय मंत्री ने संविधान सभा की चर्चा करते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर ने संविधान के सभी प्रावधानों की प्रस्तावना (पायलट) रखी और बहस के बाद एक प्रकार से उपसंहार भी किया, बीच में सभी ने बहस की और अपने विचार रखे। केवल एक ही अपवाद था, वह अनुच्छेद 370 वाला था। उस दिन किसी वजह से डॉ. आंबेडकर कुछ समय के लिए संविधान सभा की बैठक में नहीं उपस्थित हो सके। उसका फायदा उठाकर जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर गोपाल आयंगर ने यह अनुच्छेद पायलट किया और आनन-फानन में इसे संविधान का हिस्सा बना दिया गया। यह एक प्रकार से देश के साथ किया गया एक छल था। बाबासाहेब को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने इसे बहुत आत्मघाती करार दिया और खारिज करने योग्य माना। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर एक प्रकार से बाबासाहेब आम्बेडकर के प्रति सच्चा सम्मान प्रकट किया है।

उन्होंने कहा कि संविधान सभा में लिबर्टी, इक्वालिटी और फैटरनिटी (स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व) को लेकर बहुत चर्चा हुई। इसमें से पहले किसका प्रावधान हो, इसको लेकर भी बहस हुई। तब डॉ. आंबेडकर ने इक्वालिटी अर्थात समानता को सबसे प्रमुख माना। उन्होंने कहा कि यदि सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक समानता स्थापित होगी तो स्वतंत्रता और बंधुत्व स्वयं स्थापित होगा। यदि समानता के स्थान पर असमानता हावी होगी तो स्वतंत्रता भी सुरक्षित नहीं रहेगी। इसीलिए संविधान में सबसे पहले अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के सिद्धांत लिए गए हैं।

लोकार्पण समारोह में न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने भी पुस्तक की सराहना की। 168 पृष्ठ की इस पुस्तक का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है।

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(Udaipur Kiran) / जितेन्द्र तिवारी

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