यात्री जी का लेखन कृत्रिम चमत्कार से मुक्त है : महेश दर्पण
गाजियाबाद, 18 नवंबर (Udaipur Kiran) ।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार से. रा. यात्री की प्रथम पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए जाने-माने लेखक महेश दर्पण ने कहा कि एक लेखक का असल जीवन उसकी मृत्यु के बाद ही प्रारंभ होता है। जीवन भर रचनारत रहे यात्री जी के पास यह शक्ति थी कि वह पाठक को अपने साथ खड़ा कर लेते थे। यात्री जी समाज की जिस विद्रूपता से जूझते, खीजते, परेशान होते थे उसे आम आदमी के भोगे हुए यथार्थ के रूप में प्रस्तुत कर देते थे। यात्री जी एक सच्चे लेखक थे और उन्होंने हमें सच्चे लेखक होने का रास्ता दिखाया। यह रास्ते उन्होंने स्वयं अर्जित किए थे। वह लेखक होने का अर्थ जानते थे। यह अर्थ वह कई रूपों में खोलते थे। उनकी भाषा में अकृत्रिमता का चमत्कार मौजूद है। जबकि आज का रचनाकार अपनी रचना में कृत्रिमता से चमत्कार पैदा करने पर आमादा है।
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल नेहरू नगर में ‘कथा रंग’ द्वारा आयोजित स्मृति सभा को संबोधित करते हुए श्री दर्पण ने कहा कि यात्री जी जीवन से रचना उठाते थे और जीवन की भाषा में ही हमारे सामने रचना लाते थे। जीवन, आंदोलन, रचना, रचनाधर्मिता, भाषा, वर्तमान, अतीत और भविष्य, इन सबके बीच चलने वाले से. रा. यात्री आज हमारे बीच नहीं हैं, कहने वाली भाषा का मैं समर्थक नहीं हूं। वह आज भी अपने पूरे वातावरण के साथ हमारे बीच हैं और सदैव रहेंगे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए पत्रकार व लेखक वीरेंद्र आज़म ने कहा कि यात्री जी साहित्य के संत थे। उनकी यह संतई उनके लेखन के साथ-साथ उनके जीवन में भी देखने को मिलती है। श्री आज़म ने कहा कि यात्री जी ने कुछ तथाकथित बड़े लेखकों की तरह मुखौटा नहीं लगाया। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार लेखक व आलोचक सुभाष चंद्र ने उन्हें प्रेमचंद की परंपरा का लेखक बताते हुए कहा कि कई लेखक अपने लेखन में चमत्कार पैदा कर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे। लेकिन यात्री जी ने ऐसी चेष्टा के बजाए लेखन यात्रा जारी रखी। यही वजह है कि उनका लेखन ही उन्हें श्रेष्ठ साबित करता है।
डॉ. अरविंद डोगरा ने कहा कि यात्री जी जैसा जीवंत व्यक्ति मिलना दुर्लभ है। यात्री जी जैसे व्यक्तित्व का हमारे बीच होने का क्या अर्थ होता है, इसका बोध उनके जाने के बाद उत्पन्न रिक्त्ता बताती है। शायर सुरेंद्र सिंघल ने कहा कि यात्री जी जितने बड़े कहानीकार थे उतने ही सिद्ध इंसान भी थे। डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने कहा कि उन जैसी कलमकार को गौहर बनाने का श्रेय यात्री जी के मार्गदर्शन और प्रेरणा को ही जाता है। उनके पुत्र आलोक यात्री ने कहा कि ‘कथा रंग’ उनकी विरासत के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। ‘कथा रंग’ के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने कहा कि उन जैसा इंजीनियर सक्रिय लेखन में यात्री जी की प्रेरणा की वजह से ही उतर सका। डॉ. रमा सिंह ने कहा कि आम आदमी की वेदना ही यात्री जी की शब्द शक्ति थी। वह सदैव भीतर बाहर की यात्रा में लीन रहे। यही वजह है कि जैसा जीवन उन्होंने जिया वैसा ही कागज पर उतार दिया। फिल्मकार रवि यादव ने कहा कि यात्री जी के न होने की वजह से उन जैसे लोगों का एक बड़ा वर्ग स्वयं को निर्धन महसूस कर रहा है।
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(Udaipur Kiran) / फरमान अली