सोनीपत, 18 नवंबर (Udaipur Kiran) ।
सतगुरु
माता सुदीक्षा जी महाराज ने सेवा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि सेवा तभी सार्थक
होती है, जब उसमें शुद्धता और समर्पण हो। यदि सेवा में स्वार्थ या लाभ की भावना आ जाती
है, तो वह सेवा नहीं रहती।
सेवा का असली उद्देश्य प्रेम और समर्पण को प्रकट करना है,
न कि किसी को प्रभावित करना। चालाकियों और स्वार्थ को त्यागकर ईमानदारी से की गई सेवा
ही सच्ची सेवा मानी जाती है।
गन्नौर-समालखा
हल्दाना बॉर्डर स्थित निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर तीन दिवसीय 77वें निरंकारी संत समागम
में सतगुरु माता जी ने लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि सीमित सोच
जीवन की प्रगति में बाधक होती है। जीवन में सोच और आदतों का विस्तार जरूरी है, ताकि
हम अपनी कमजोरियों को पहचानकर उन्हें दूर कर सकें। सकारात्मक बदलाव से न केवल हमारा
दृष्टिकोण व्यापक बनता है, बल्कि दूसरों के विचारों को स्वीकार करने की क्षमता भी विकसित
होती है।
सतगुरु
माता जी ने समझाया कि जिद्दी सोच रिश्तों और सच्चाई से दूर कर देती है।
नई सीखों को
अपनाना और विचारों का आदान-प्रदान ही आध्यात्मिक मजबूती का आधार है। निरंकारी राजपिता
रमित जी ने कहा कि सतगुरु की कृपा और शिक्षाएं मानव जीवन को असीम और गौरवशाली बनाती
हैं। भक्ति जीवन का केंद्र बनकर हमें सांसारिक सुखों से परे ले जाती है।
समागम
में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सतगुरु माता जी के दर्शन कर आशीर्वाद
लिया।
समागम
में आधुनिक कायरोप्रैक्टिक तकनीक से 3,000-4,000 लोगों को प्रतिदिन निःशुल्क स्वास्थ्य
लाभ मिल रहा है। 100 बिस्तरों वाला अस्पताल, 40 एम्बुलेंस, और 5 डिस्पेंसरियां कार्यरत
हैं। होम्योपैथी, फिजियोथेरेपी, और विशेषज्ञ सेवाओं के माध्यम से प्रतिदिन 20,000 मरीजों
का उपचार किया जा रहा है।
77वें
निरंकारी संत समागम ने वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श को साकार करते हुए सकारात्मक ऊर्जा
का संचार किया। सतगुरु की शिक्षाओं ने संगत को प्रेम, सेवा और समर्पण के मार्ग पर चलने
की प्रेरणा दी।
—————
(Udaipur Kiran) परवाना