कोलकाता, 18 नवंबर (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल में लॉटरी घोटाले से जुड़ी एक संदिग्ध संस्था, जिस पर हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कार्रवाई की है, 2012 से ही आयकर विभाग के रडार पर थी। एक अधिकारी के अनुसार, इस संस्था के कर चोरी के मामले पहली बार 2012 में सामने आए थे, जब इसके एक निदेशक को चेन्नई में गिरफ्तार किया गया था।
2015 में आयकर विभाग ने संस्था के विभिन्न कार्यालयों पर बड़े पैमाने पर छापेमारी की और करीब 70 करोड़ रुपये जब्त किए। इसके बाद संस्था की गतिविधियां कुछ समय के लिए धीमी पड़ गईं, लेकिन 2017 के अंत में ये फिर से तेजी से सक्रिय हो गईं।
हालांकि, उस समय आयकर विभाग द्वारा की गई कार्रवाई केवल कर (टैक्स) चोरी तक ही सीमित थी। अब, जब ईडी ने इस मामले को अपने हाथ में लिया है, तो आरोपों का दायरा बढ़ गया है। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग, हवाला के जरिए अवैध धन का विदेशों में लेन-देन और उस धन को विभिन्न व्यवसायों में निवेश करना शामिल है।
इस घोटाले की मुख्य कड़ी यह है कि लॉटरी के ड्रा अक्सर बेचे नहीं गए टिकटों पर किए जाते थे। इस प्रक्रिया से उन लोगों को धोखा दिया गया जिन्होंने मेहनत की कमाई से टिकट खरीदे थे। फर्जी विजेताओं को विभिन्न माध्यमों से प्रचारित किया गया, जिससे और लोगों को इन लॉटरी टिकटों की ओर आकर्षित किया गया।
सूत्रों का कहना है कि कई लोग इन विज्ञापनों के झांसे में आकर टिकट खरीद लेते थे, यह जाने बिना कि उनके द्वारा खरीदे गए टिकटों पर ड्रा नहीं होगा। पिछले सप्ताह, ईडी अधिकारियों ने कोलकाता और इसके आसपास के कई स्थानों पर छापेमारी की, जिसमें एक लॉटरी प्रिंटिंग प्रेस भी शामिल थी।
ईडी ने कोलकाता के लेक मार्केट इलाके में संस्था के एक एजेंट के घर और दफ्तर से तीन करोड़ रुपये की बेहिसाब नकदी भी जब्त की।
इस मामले पर पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने काफी समय से आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा कि इस घोटाले में ग्रामीण इलाकों के कई गरीब लोग अपनी मेहनत की कमाई गवां चुके हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस लॉटरी घोटाले में तृणमूल कांग्रेस के कई प्रमुख नेता शामिल हैं और उन्होंने इससे लाभ कमाया है।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर