अनूपपुर, 13 नवंबर (Udaipur Kiran) । पिछले 10 वर्षों में मधुमेह से संबंधित निदान या उपचारात्मक तौर-तरीकों में बहुत प्रगति हुई है। हालाँकि रोगियों को उम्मीद के मुताबिक लाभ नहीं मिल पाया। एक कारण नैदानिक जड़ता हो सकती है, जहाँ स्वास्थ्य सेवा प्रदाता या रोगी स्वास्थ्य को अच्छी तरह से प्रबंधित करने के लिए सक्रिय रवैया नहीं दिखाते हैं। शिक्षा और जागरूकता ही कुंजी हैं। इसमें रोकथाम, मधुमेह से पहले उपचार और मधुमेह और समग्र स्वास्थ्य का प्रबंधन शामिल है। मधुमेह की शुरुआत से पहले, जटिलताओं की शुरुआत से पहले और जटिलताओं के शुरू होने के बाद कई स्तरों पर रोकथाम लागू की जा सकती है। जैसे-जैसे भारत अधिक युवा होता जा रहा है, वैसे-वैसे 40 वर्ष से कम उम्र के युवा भारतीयों में मधुमेह का प्रचलन भी बढ़ रहा है। यह स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक बोझ के रूप में बहुत बड़ा होगा। इसलिए, रोकथाम ही कुंजी है। एक बार जटिलताएं उत्पन्न हो जाने पर, सर्वोत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए विशेषज्ञों – नेत्र रोग विशेषज्ञ, नेफ्रोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, हृदय रोग विशेषज्ञ, कार्डियोवस्कुलर सर्जन, पोडियाट्रिस्ट और उपचार करने वाले चिकित्सक-एंडोक्राइनोलॉजिस्ट के बीच समन्वित प्रयास की आवश्यकता होती है।
जिला चिकित्सालय में पदस्थ नेत्र सर्जन एवं रेटीना विशेषज्ञ डॉ. जनक सारीवान ने 14 नवम्बर विश्व मधुमेह दिवस पर जनजागरूकता के दृष्टिकोण से बताया है कि डायबिटिक रेटिनोपैथी आंखों की एक ऐसी बीमारी है जो शुगर से पीड़ित व्यक्तियों में होती है और उन व्यक्तियों में नजर खराबी और अंधापन का कारण बन सकती है। इस बीमारी में आंखों की रेटीना के रक्त वाहिकाएं प्रभावित होने लगती है। रेटीना में रक्त स्त्राव होने लगता है और सूजन आ जाती है, जिससे नजर कम होने लगती है। जागरूकता की कमी के कारण उचित समय में इसका जांच व उपचार न होने से नजर स्थाई रूप से कम हो जाती है। ऐसे व्यक्तियों को अपनी आंखों के रेटीना की जांच प्रत्येक 6 माह में कराते रहना चाहिए। उन्होंने विश्व मधुमेह दिवस पर मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के रेटीना की जांच कराने की अपील की है। उन्होंने मधुमेह रोग से पीड़ितों को बीमारी से बचने जागरूक रहकर जांच एवं उपचार नियमित अन्तराल में कराने को भी कहा है।
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(Udaipur Kiran) / राजेश शुक्ला