– कॉप-29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा- वर्तमान नीतियां दुनिया में तापमान वृद्धि का सबब, दुनिया के लिए विनाशकारी
– यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा- जलवायु आपदा स्वास्थ्य और सतत विकास के लिए नुकसानदायक
नई दिल्ली, 11 नवंबर (Udaipur Kiran) । जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) फ्रेमवर्क कन्वेंशन (कॉप-29) के पक्षकारों का 29वां सम्मेलन सोमवार को अजरबैजान के बाकू में शुरू हो गया। यह सम्मेलन 22 नवंबर तक चलेगा।
इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मेजबान अजरबैजान ने सोमवार को सभी देशों से लंबित मुद्दों को तत्काल सुलझाने की अपील की। संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में अपना भाषण देते हुए कॉप-29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा कि वर्तमान नीतियां दुनिया को 3 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर ले जा रही हैं, जो करोड़ो लोगों के लिए विनाशकारी होगा।
इससे पहले विश्व मौसम विज्ञान संगठन(डब्लूएमओ) ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष होने की ओर अग्रसर है। इसके अब तक के सर्वाधिक गर्म वर्ष होने की संभावना है, क्योंकि तापमान अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। यह रिपोर्ट अज़रबैजान के बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, सीओपी 29 के पहले दिन जारी की गई । यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि पेरिस समझौते की महत्वाकांक्षाएं बड़े खतरे में हैं।
रिपोर्ट के अनुसार 2015-2024 सबसे गर्म दस साल के रूप रिकॉर्ड किया गया है। ग्लेशियरों से बर्फ तेजी से पिघल रही है, समुद्र के स्तर में वृद्धि और महासागर का ताप तेजी से बढ़ रहा है। यह जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं पर कहर बरपा रहा है। छह अंतरराष्ट्रीय डेटासेट के विश्लेषण के अनुसार, जनवरी-सितंबर 2024 में वैश्विक औसत सतही हवा का तापमान 1.54 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
यह सम्मेलन देशों के लिए पेरिस समझौते के तहत अपनी अपडेटेड राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं को पेश करने का अहम पल भी होगा, जो 2025 की शुरुआत तक पेश की जानी हैं। अगर सही तरीके से इस पर अमल किया जाए, तो ये योजनाएं वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस के दायरे में ला देंगी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि जलवायु आपदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है, असमानताओं को बढ़ा रही है, सतत विकास को नुकसान पहुंचा रही है और शांति की नींव को हिला रही है। इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित कमज़ोर लोग हैं।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, चूँकि मासिक और वार्षिक तापमान अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहे हैं, इसलिए इस बात पर ज़ोर देना ज़रूरी है ताकि दीर्घकालिक वैश्विक औसत सतही तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जा सके और तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाया जा सके।
उन्होंने कहा कि आंशिक रूप से एल नीनो और ला नीना जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण दैनिक, मासिक और वार्षिक समय-सीमा पर दर्ज वैश्विक तापमान विसंगतियां बड़े बदलावों के लिए प्रवण हैं। उन्होंने कहा कि इन्हें पेरिस समझौते में निर्धारित दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य के बराबर नहीं माना जाना चाहिए, जो दशकों तक औसत रूप से कायम रखे गए वैश्विक तापमान स्तर को संदर्भित करता है।
सेलेस्टे साउलो ने कहा कि हालांकि, यह पहचानना ज़रूरी है कि तापमान में हर डिग्री का अंश मायने रखता है। चाहे वह 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम हो या उससे ज़्यादा, ग्लोबल वार्मिंग में हर अतिरिक्त वृद्धि जलवायु चरम सीमाओं, प्रभावों और जोखिमों को बढ़ाता है।
उन्होंने कहा कि इस साल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हमने जो रिकॉर्ड तोड़ बारिश और बाढ़, तेज़ी से बढ़ते उष्णकटिबंधीय चक्रवात, जानलेवा गर्मी, लगातार सूखा और भीषण जंगल की आग देखी है, दुर्भाग्य से ये हमारी नई वास्तविकता और हमारे भविष्य का पूर्वाभास है। हमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को तुरंत कम करने और हमारी बदलती जलवायु की निगरानी और समझ को मज़बूत करने की ज़रूरत है। हमें जलवायु सूचना सेवाओं और सभी के लिए प्रारंभिक चेतावनियों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए समर्थन बढ़ाने की ज़रूरत है।
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(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी