जालाेर, 31 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । धन की देवी महालक्ष्मी का विवाह भगवान विष्णु से राजस्थान के भीनमाल (जालोर) में हुआ था। वेदाचार्य का दावा है कि भीनमाल का प्राचीन नाम श्रीमाल है। इसे रतनमाल या पुष्पमाल भी कहा जाता रहा। यहीं ऋषि भृगु का स्थान था। जिनके घर महालक्ष्मी ने बेटी बनकर जन्म लिया था। श्रीमाल में विष्णु-लक्ष्मी का विवाह हुआ था।
इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि एक बार ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु को लात मार दी थी। उनकी पत्नी लक्ष्मी को यह देख दुख हुआ और उन्होंने तय किया कि वे भृगु से भगवान विष्णु का सम्मान कराएंगी। इसके लिए उन्होंने भृगु की बेटी के रूप में जन्म लिया। भीनमाल के मुख्य बाजार में कमलेश्वरी गजलक्ष्मी का प्राचीन मंदिर है। प्रतिमा संगमरमर की है। इसमें ऊपर दोनों तरफ हाथी बने हुए हैं। एक तरफ ब्रह्मा और दूसरी तरफ विष्णु की प्रतिमाएं उकेरी हुई हुई हैं। श्रीमाल से होने के कारण यहां श्रीमाली ब्राह्मण ही मंदिर की सदियों से सेवा पूजा करते आए हैं। मंदिर के पुजारी महादेव बोहरा बताते हैं कि यह प्रतिमा खास है। मां लक्ष्मी के भाव दिन में तीन बार परिवर्तित होते दिखाई देते हैं। सुबह बालिका, दोपहर में महिला और शाम में प्रौढ़ अवस्था में दर्शन का आभास होता है। मेरे दादा-परदादा यहां पूजा करते आए हैं। मैं पांचवीं पीढ़ी से हूं। यहां सुबह 10 बजे और शाम को 7 बजे आरती होती हौ। यह मां कमलेश्वरी की मूर्ति है। इसके दोनों तरफ हाथी हैं जो गंगाजल से अभिषेक करते हैं। श्रीमाली ब्राह्मणों के द्वारा यहां सेवा पूजा की जाती है। यहां श्रीमाली स्वर्णकार व श्रीमाली जैन भी आते हैं। यहीं विष्णु और लक्ष्मी का विवाह हुआ था।
मंदिर के सचिव भगवती प्रसाद दवे बताते हैं कि कमलेश्वरी मां श्रीमाली ब्राह्मण, श्रीमाली जैन और श्रीमाली स्वर्णकार की कुलदेवी हैं। यहां दर्शन करने महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में बसे श्रीमाली दर्शन करने आते हैं। स्कंद पुराण और श्रीमाल पुराण के अुनसार दावा किया जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने इस नगर का निर्माण महालक्ष्मी और भगवान विष्णु के विवाह के प्रयोजन के लिए ही किया था। संस्कृति शोध परिषद के सदस्य व इतिहासकार अशोक सिंह ओपावत ने बताया कि श्रीमाल पुराण के अनुसार भीनमाल महालक्ष्मी की नगरी है। वे भृगु ऋषि की बेटी थीं। भृगु की बेटी श्री को पता नहीं था कि वही महालक्ष्मी हैं। त्रयंबक सरोवर जिसे वर्तमान में तलबी तालाब कहा जाता है, उसमें स्नान करने के बाद उन्हें खुद के मूल स्वरूप का पता चला। इसके बाद भगवान विष्णु ने उनसे शादी की। ऐसा श्रीमाल पुराण में भी उल्लेख है। विवाह के बाद यह नगर भगवान विष्णु ने ब्राह्मणों को दान कर दिया। यहां निवासी करने वाले लोग श्रीमाली कहलाए। श्रीमाली में कौशिक गौत्र की यह कुलदेवी हैं।
उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के इतिहास शोध परिषद के अध्यक्ष मोहित शंकर सिसोदिया ने बताया कि भीनमाल का अस्तित्व वैदिक काल से है। भीनमाल प्राचीन समय में गुर्जत्रा प्रदेश की राजधानी रहा। इसका विस्तार विस्तार पाकिस्तान में गुर्जरवेला जिले से भरूंच तक रहा। इसका प्राचीन नाम श्रीमाल है। इस मंदिर को लेकर यह भी दावा किया जाता है कि इसका अस्तित्व चालुक्य वंश से पहले यानी 220 ईसा पूर्व का है। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपनी यात्रा में उल्लेख किया है कि यहां 50 देव मंदिर हैं। हेन सांग ने अपनी यात्रा में इस नगर का जिक्र करते हुए इसे शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध सभी का प्रमुख धार्मिक स्थल बताया। इसे रतनमाल और पुष्पमाल भी कहा गया। बनावट से यह मंदिर 1400 साल पुराना साबित होता है। उस काल में मंदिर में लकड़ी की मूर्ति हुआ करती थी, जिसे समय-समय पर अपग्रेड किया जाता था।
ऐसा जिक्र है कि लकड़ी की प्रतिमा को चालुक्य राजा अहिल पाटन (गुजरात) ले गए थे। वहां के मंदिर में आज भी लकड़ी की प्रतिमा है। बाद में यहां पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई। उन्होंने बताया कि अमेरिकन स्कॉलर अल्केश जवेरी गजलक्ष्मी पर ही काम कर रहे हैं। इसी तरह की मूर्ति यहां से श्रीमाल के लोग जहां-जहां विस्थापित हुए, वहां पाई जाती हैं। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद तक इस शैली की मूर्ति मिलती हैं। श्रीमाली समाज के लोगों ने गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल तक जहां भी गए, प्रतिमा का कन्सेप्ट यही रहा। मान्यता है कि भगवान विष्णु के सम्मान के लिए लक्ष्मी ने ऋषि भृगु की बेटी के रूप में जन्म लिया। भृगु ने बेटी का विवाह विष्णु से यहीं कराया था। श्रीमाली समाज आश्विन कृष्ण षष्ठी को लक्ष्मी जन्मोत्सव मनाया है। इसके 40 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है।
मोहित शंकर सिसोदिया ने बताया कि यहां लक्ष्मी की प्रतिमा खास है। इसमें मां कमल पर विराजित है जिसके नीचे कुबेर का आयुध नेवला दर्शाया है। हाथी जल की वर्षा करते हैं। यह संकेतक हैं। अगर पूरे भारत को एक घर मान लिया जाए तो पश्चिम स्थान यानी राजस्थान कुबेर का स्थान होगा। चूंकि नदी को भी धन के रूप में पूजा जाता है इसलिए नदी का पानी बरसाते हाथी एक तरह से धन वर्षा करते नजर आते हैं। मंदिर से जुड़े कुछ अभिलेख भी पाए जाते हैं। जिन्हें जगत स्वामी सूर्य मंदिर से हासिल किया गया था। आर्केलॉजी रिकॉर्ड के अनुसार इस तरह की प्रतिमा गर्भ गृह के तोरण द्वारों पर लगाई जाती थी। यह धन का प्रतीक मानी जाती है। राजस्थान के इस हिस्से से धनाढ्य लोग निकले हैं। वे देवी लक्ष्मी के उपासक रहे हैं।
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(Udaipur Kiran) / रोहित