गोरखपुर, 28 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । विश्व आयुर्वेद मिशन के अध्यक्ष प्रो. जीएस तोमर ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में मधुमेह रोगियों की निरन्तर बढ़ती हुई संख्या गम्भीर चिन्ता का विषय है । भारत में भी इन रोगियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिल रही है। इसका मूल कारण हमारी जीवनशैली में हो रहा बदलाव और तनाव है। ऐसे में मधुमेह से बचने का मूलमंत्र है कि हम तनावमुक्त जीवनशैली अपनाएं।
प्रो. तोमर गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) से सम्बद्ध अस्पताल में आयोजित नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर में मरीजों की जांच के बाद उन्हें परामर्श दे रहे थे। शिविर में उन्होंने 165 मरीजों की जांच की। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि आज स्थिति इतनी भयावह है कि हर घर में कोई न कोई मधुमेह रोग से पीड़ित है। मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति ही नहीं, प्रायः चिकित्सकों का ध्यान भी रक्त शर्करा के नियंत्रण पर ही केन्द्रित रहता है । जबकि आवश्यकता इस बात की है कि उसकी आँख, हृदय, किडनी तथा नाड़ियों जैसे महत्वपूर्ण अंगों को मधुमेह के घातक उपद्रवों से बचाया जा सके।
प्रो. तोमर ने कहा कि मधुमेह की चिकित्सा में आयुर्वेदीय औषधियाँ एक तरफ़ जहाँ इंसुलिन के स्राव को बढ़ाती हैं, वहीं दूसरी ओर ये इंसुलिन के विरुद्ध बन रहीं एण्टीबॉडीज को रोक कर इंसुलिन की सक्रियता को बढ़ाकर इसे प्रभावी भी बनाती हैं। उन्होंने बताया कि प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त में उठना, कम से कम 45 मिनट नियमित टहलना और योगासन डायबिटीज़ रोगियों के लिए अमृततुल्य फलदायी है। कच्ची हल्दी का 5 ग्राम चूर्ण 40 एमएल आँवला रस में मिलाकर प्रात:काल नाश्ता के तुरन्त पहले या बाद में लेना मधुमेह में अत्यन्त लाभकारी है। खान पान में मोटे अनाज विशेषकर जौ, चना, बाजरा, ज्वार, मक्का, रागी, सांवा, कोदों के साथ काला गेहूँ मिलाकर बनाई गई चपाती न केवल न्यूनतम ग्लाइसीमिक इण्डेक्स से युक्त है, अपितु अधिक रेशेदार (फ़ाइब्रस) होने से मधुमेह नियंत्रण के साथ-साथ हमारी आँतों (कोलन) को भी स्वस्थ रखतीं हैं। औषधियों में शुद्ध शिलाजीत एवं चन्द्रप्रभा वटी सर्व प्रयोज्य है। बसन्त कुसुमाकर रस, डायबकल्प प्लस एवं बीजीआर-34 जैसी प्रभावी औषधियाँ मात्रानुसार चिकित्सक के परामर्श से प्रयोग की जा सकती हैं।
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(Udaipur Kiran) / प्रिंस पाण्डेय