कठुआ 25 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । अध्यक्ष जिला कानूनी सेवाएं एवं प्राधिकरण कठुआ जतिंदर सिंह जम्वाल के नेतृत्व में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 जिसे पीओएसएच अधिनियम भी कहा जाता है, पर कानूनी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम में कामिया सिंह अंडोत्रा सचिव जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण कठुआ और जिला न्यायालय परिसर की महिला स्टाफ सदस्यों और डीएलएसए कठुआ के पीएलवी ने भाग लिया। सचिव ने अधिनियम पर विचार-विमर्श करते हुए कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न लैंगिक भेदभाव है जो भारतीय संविधान के तहत प्रदत्त समानता और जीवन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह न केवल पीड़ित महिला के सामाजिक और आर्थिक विकास को प्रभावित करता है, बल्कि उसे शारीरिक और भावनात्मक पीड़ा से भी गुज़रता है। इस मुद्दे के समाधान के संबंध में पहला कदम माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा दिशानिर्देश जारी करते समय उठाया था जिसके परिणामस्वरूप पीओएसएच अधिनियम लागू हुआ। चूँकि “रोकथाम इलाज से बेहतर है“ अधिनियम नियोक्ता पर लिंग संवेदीकरण कार्यस्थल बनाने और महिलाओं के खिलाफ शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण बनाने में योगदान करने वाले अंतर्निहित कारकों को हटाने और ऐसे मामलों से निपटने के लिए आंतरिक समिति के गठन का दायित्व डालता है। चूंकि कानून कार्यवाही को गोपनीय बनाता है, इसलिए महिला कर्मचारियों को ऐसे किसी भी अवांछित व्यक्त या निहित व्यवहार के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया गया। पुनीत कुमारी उप मुख्य कानूनी सहायता बचाव वकील डीएलएसए कठुआ और अधिवक्ता सुमित जसरोटिया ने पीओएसएच अधिनियम पर विशेष ध्यान देने के साथ उनके मानवीय और संवैधानिक अधिकारों के बारे में सभा को संबोधित किया।
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(Udaipur Kiran) / सचिन खजूरिया