Uttrakhand

 चेक बाउंस के मामले में चेक लेने का कारण भी विधिक होना चाहिए : जिला एवं सत्र न्यायाधीश

-जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने चेक बाउंस के मामले में 1 वर्ष की कैद एवं 10.3 लाख के अर्थदंड के दोषसिद्ध को किया दोषमुक्त

नैनीताल, 25 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । एनआई एक्ट यानी चेक अनादरण अधिनियम के अंतर्गत केवल चेक बाउंस होने पर चेक देने को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, वरन इसके लिये चेक लेने वाले को यह भी साबित करना होगा कि उसने चेक विधिक कारण से लिया था। नैनीताल के जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुबीर कुमार की अदालत ने एनआई एक्ट के तहत एक वर्ष की सजा एवं 10.3 लाख रुपये के अर्थदंड से दंडित किये एक आरोपित की सजा को निरस्त करते हुए उसे दोष मुक्त घोषित करते हुए भविष्य के लिये उदाहरण प्रस्तुत करने वाला ऐसा एक बड़ा फैसला दिया है।

मामले के अनुसार मूल प्रकरण में 2016 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त संजय सिंह बोहरा पुत्र मनोहर सिंह बोहरा निवासी ग्राम व पोस्ट गेठिया थाना तल्लीताल जिला नैनीताल ने अपने ही गांव के भुवन सुनरिया पुत्र प्रेम बल्लभ पर आरोप लगाए थे कि उसने एक प्लॉट के लिए ₹11,99,623 की राशि एक वर्ष के भीतर लौटाने का वादा करके ली थी, लेकिन समय सीमा बीतने के बाद भी इसमें से केवल एक लाख 500 रुपये ही लौटाए। शेष राशि 10.99 लाख वापस नहीं कर पाया। इसके बदले 13 जनवरी 2022 को 10 लाख रुपये का स्वयं हस्ताक्षरित चेक दिया, जो कि बैंक से अनादरित हो गया। मामला अदालत में पहुँचा तो न्यायिक मजिस्ट्रेट-प्रथम अपर सिविल जज-जूनियर डिवीजन नैनीताल की अदालत ने 18 अक्टूबर 2023 को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत भुवन सुनरिया को दोष सिद्ध पाते हुए एक वर्ष के कारावास और 10 लाख 30 हजार रुपये का अर्थदंड की सजा से दंडित किया।

इस आदेश से क्षुब्ध भुवन सुनेरिया ने अधिवक्ता पंकज कुलौरा के माध्यम से जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में अपील की। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता कुलौरा ने सर्वोच्च न्यायालय के दत्तात्रेय बनाम शरणप्पा के मामले में इसी वर्ष 7 अगस्त 2024 को दिये गये फैसले का हवाला देते हुए तर्क रखा। इसके आधार पर संजय बोहरा यह साबित नहीं कर पाये कि उन्होंने ₹11,99,623 की राशि भुवन सुनरिया को उधार दी थी। क्योंकि उनके बैंक स्टेटमेंट के उनकी आर्थिक स्थिति 1.07 लाख रुपये से अधिक उधार देने की ही नहीं थी। एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दोष सिद्धि के लिये धारा 118 और 139 के तहत लेन देन को विधिक भी होना चाहिए। यानी गैर कानूनी कृत्य के लिये चेक का लेनदेन नहीं किया जा सकता है। इस मामले में धारा 118 और 139 का खंडन हो गया है। इसलिये न्यायालय ने निचली अदालत के दोषसिद्धि के आरोप को निरस्त कर आरोपित भुवन सुनरिया को दोषमुक्त घोषित कर दिया गया है। बताया गया है कि इस मामले में भुवन सुनरिया ने पहले से हस्ताक्षरित चेक किसी वाहन कंपनी को दिया था, जिसे बाद में स्वयं धनराशि दर्ज कर बैंक में लगाया गया था और वह अनादरित हो गया था।

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(Udaipur Kiran) / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी

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