Uttar Pradesh

अटाला मस्जिद को लेकर वक्फ बोर्ड पीस कमेटी के प्रार्थना पत्र कों सिविल कोर्ट ने किया खारिज

अटाला मस्जिद को लेकर वक्फ बोर्ड  पीस कमेटी के प्रार्थना पत्र कों  सिविल कोर्ट ने किया खारिज
अटाला मस्जिद को लेकर वक्फ बोर्ड  पीस कमेटी के प्रार्थना पत्र कों  सिविल कोर्ट ने किया खारिज
अटाला मस्जिद को लेकर वक्फ बोर्ड  पीस कमेटी के प्रार्थना पत्र कों  सिविल कोर्ट ने किया खारिज

जौनपुर 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । दीवानी कोर्ट के सिविल जज जूनियर डिविजन ने जौनपुर अटाला मस्जिद पर सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा दिया गया 37सी प्रार्थना पत्र को सिविल जज जेडी सुधा शर्मा की कोर्ट ने बुधवार को खारिज कर दिया। साथ ही लिखित बयान कमीशन रिपोर्ट की सुनवाई के लिए 16 नवम्बर को डेट दिया है।

अटाला मंदिर को लेकर कोर्ट में वक्फ बोर्ड और पीस कमेटी बनाम स्वराज वाहिनी ने कोर्ट में एक याचिका डाली थी जिसमें स्वराज वाहिनी ने याचिका में डाली थी जनपद की ऐतिहासिक धरोहर अटाला मस्जिद जो पूर्व में मंदिर था जिस पर वक्फ बोर्ड ने यह शिकायत की थी कि यह मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है जिसको लेकर यह सुनवाई इस कोर्ट में नहीं हो सकती है।

जिस पर सिविल कोर्ट जौनपुर के सिविल जज पर अधिवक्ता सुरेश चंद्र पाठक ने बहस किया ।इस मामले में (Udaipur Kiran) प्रतिनिधि से बात करते हुए स्वराज वाहिनी के अधिवक्ता सुरेश चंद्र पाठक ने बताया कि मस्जिद की तरफ से एप्लीकेशन पड़ी थी यह मामला सुनवाई योग्य नहीं है 1991 में जब अयोध्या का विभाजित ढांचा गिराया गया था तो उसे समय नरसिंह राव की सरकार थी 1947 के पहले जो भी धर्म मस्जिद जैसे थे वह वैसे ही रहेंगे उसी के आधार पर मुस्लिम पक्ष ने यह प्रार्थना पत्र दिया था। जिसे कोर्ट ने माना नहीं है। इसलिए नहीं माना कि इस मंदिर से जब हम हिंदू और सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले लोग बेदखल किए गए थे, उस समय से हर घर में अटाला माता की पूजा की जाती है यह वक्फ़ बोर्ड की प्रॉपर्टी नहीं है क्योंकि उस समय जो भी बाहरी आक्रांता आए थे उन्होंने आक्रमण किया था। आक्रमणकारी को कोई राइट क्लेम नहीं है जब तक कि उनका उस पर कोई मालिकाना हक न हो ।इस आधार पर कोर्ट ने उनकी बात को नहीं माना।कोर्ट ने कहा कि आक्रमणकारी शाहजहां के समय में जहां इनका खतौनी में नाम दर्ज हुआ था, उसमें हमारा मालिकाना हक था । उस समय हमारे यहां खतौनी पर नाम दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं था ।शाहजहां के समय में यह व्यवस्था हुई थी उस समय उन लोगों का ही शासन था और सारे इस्लामी राजा थे । बाद में अंग्रेज आए। हमको कभी अवसर मिला नहीं ,हम अपने घरों में बैठकर उन्हें देवी का प्रतीक मानकर पूजा करते थे। शादी-विवाह में भी देवताओं का मन से आवाहन कर लिया जाता था। उसी के आधार पर हम लोग उनकी पूजा करते थे इसी को लेकर कोर्ट ने यह फैसला दिया है ।

(Udaipur Kiran) / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव

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