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भारत को तीर्थयात्रियों के कदम जोड़ते हैं, राजाओं या सरकारों की शक्ति नहीं: अर्जुन आनंद

दक्षिण अफ्रीका के विश्वविद्यालय में अपना शोध पत्र पढ़ते हुए अरुजन आनन्द।

धर्मशाला, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । दक्षिण अफ्रीका विश्वविद्यालय के तत्वावधान में ‘स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं’ पर आयोजित चौथे अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में धर्मशाला के अर्जुन आनंद ने ‘इतिहास और भारत का पुण्य क्षेत्र: भूतकाल को देखने की भारतीय दृष्टि’ विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।

अर्जुन ने अपनी अयोध्या यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि हाल ही में जब वे अयोध्या के दशरथ महल गए, तो एक अनजान बुजुर्ग सज्जन ने कहा, श्रीराम आज भी यहीं हैं, उनका शाही दरबार आज भी लगता है। उन्होंने भारतीय संस्कृति में कृष्ण, राम और शिव-पार्वती के व्यक्तित्व को न केवल भूतकाल का हिस्सा, बल्कि अनंत वास्तविकताएं बताया।

अर्जुन ने कहा, हम हर रामनवमी और कृष्ण जन्माष्टमी पर उनके जन्म का अनुभव करते हैं। त्योहारों, अनुष्ठानों, कला रूपों और तीर्थयात्राओं के माध्यम से हम अनंत और आध्यात्मिक के साथ एकात्मता का अनुभव करते हैं, जो समय की सीमाओं से परे है।

उन्होंने भारत की पहचान को तीर्थयात्रियों से जोड़ते हुए कहा, भारत को राजाओं या सरकारों की शक्ति नहीं, बल्कि सैंकड़ों वर्षों से चल रहे तीर्थयात्रियों के कदम जोड़ते हैं। यह तीर्थयात्रियों का भारत है, जो हमारी सभ्यता की एक अद्भुत छवि प्रस्तुत करता है।

अर्जुन आनंद चैतड़ू गांव के निवासी हैं, जिन्होंने राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला से स्नातक और हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से एमफिल की पढ़ाई की है। वे वर्तमान में ज्वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पीएचडी कर रहे हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के लिए उन्हें भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के सहयोग से दक्षिण अफ्रीका भेजा गया है।

(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया

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