छतरपुर, 20 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । छतरपुर जिले मेें जल संरक्षण ,संबर्धन योजना के तहत करोडों रूपये की लागत से निर्मित पांच सौ से अधिक स्टाप-डेम बनाये गये है। लेकिन इनके फाटक नदारत है जिससे विभिन्न जलस्त्रोतों पर बनें इन स्टाप-डेमों में इस बार की बारिश का पानी का संरक्षण नहीं हो पा रहा है और यह जल बहकर बुन्देलखण्ड से लगी यूपी की सीमा में निरंतर बहकर जा रहा है। स्टाप-डेमों के अलावा पानी रोक पट्टियॉ भी खामियों के चलते औचित्यहीन साबित हो रही है। जिले में जल संरक्षण संवर्धन के उद्देश्य से बीते सालों में लगभग 63 करोडों बजट खर्च करके तैयार 567 स्टापडैम और अरबों की लागत से बनी पानी रोक पट्टियॉ शासन की मंशा के विपरीत देखी जा रहें है। बनाए गए स्टापडैमों से पानी रोकने का काम किया जाना था। जिससे जल स्तर के साथ-साथ पेयजल और सिंचाई के लिए सुविधा हो सके लेकिन तमाम उद्देश्य धरे के धरे रह गए हैं। लगभग सभी स्टापडैमों में पानी रोकने के लिए फाटक नहीं लगाए गए। अपवाद के बतौर महज 5 प्रतिशत स्टापडैम फाटक युक्त हैं शेष स्टापडैम बिना फाटक के औचित्यहीन बने हुए है। ईशानगर विकासखंड के अंतर्गत ग्राम सतना में 48 लाख की लागत से, ग्राम चौका में 13 लाख, मातगुवां में 17 लाख, बिजावर विकासखंड के गुलगंज में 39 लाख, बड़ामलहरा के बंधा में 5 लाख बक्स्वाहा के नैनागिर में 5 लाख, राजनगर के पठाघाट गंज, नौगांव के पुतरया, बारीगढ़ के चंदवारा, बिजावर के कुपी और बांकी गिरौली में लाखों की लागत से स्टापडैम बनाए गए थे। ये स्टापडैम बून्देलखण्ड विशेष पैकेज,मनरेगा योजना के तहत 1 अरब 35 करोड़ से बनाए गए थे। इसके अलावा आरईएस डबल्यूआरडी, वन विभाग, डीपीआईपी, सिंचाई विभाग, सांसद विधायक निधि और ग्राम पंचायतों से निर्माण कराए गए थे। स्टापडैमों में पानी ना ठहरने से जिले में पेयजल संकट के साथ-साथ सिंचाई की समस्या बरकरार बनी रहती है। जल संरचनाओं का निर्माण कराने के बाद जिम्मेदार विभागों द्वारा ना तो इनका निरीक्षण समय-समय पर किया ना ही खामियों के बाद दोषियों पर कार्रवाई। जिले में वारिष का पानी संरक्षित करने के प्रयास नाकाफी होने से बुंदेलखंड सीमा का वर्षा जल बहकर लगातार यूपी सीमा में जा रहा है।
जल संरक्षण संबर्धन के तहत म.प्र. और उ.प्र. की सीमा पर प्रस्तावित केन-बेतवा लिंक परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के कार्यकाल से लेकर यूपीय सरकार के बाद अब एनडीए तक के कार्यकाल में सिर्फ राजनीति तक सीमित रहने के बाद अब कछुवा गति से कार्य चल रहा है। प्रदेश के पूर्व कृषि मंत्री एवं म.प्र.पिछडा वर्ग आयोग के अध्यक्ष डॉ रामकृष्ण कुसमरिया केन वेतवा लिंक परियोजना को बुन्देलखंड की लाइफ लाइन बताते है उनका कहना है उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि यूपीए सरकार के पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने इस परियोजना कोे पर्यावरण संकट का हवाला देकर पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी देने में पीछे हटते रहे है जिससे इस महात्वाकॉछी सिंचाई परियोजना को लागू करने में बहुत सारा समय बर्बाद हुआ है। बसपा नेता डॉक्टर घासीराम पटेल ने बताया कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र के किसानों को खेतों के लिए पानी उपलब्ध कराने लगातार संघर्ष करना पड़ता है। करोड़ो की लागत से बने स्टापडैमों की उपयोगिता सुनिश्चित करने किसी का ध्यान नहीं रहता है। सत्ता और विपक्ष के नेताओं ने दावा किया है कि जल संरक्षण का यह मुद्दा उन्होंने जिला योजना समिति की बैठक में कई बार उठाया है। जिला पंचायत सदस्य पति इंदर सिंह बुन्देला का कहना है कि स्टापडैमों को चार फिट उपर उठाकर बनाया जाना चाहिए था जिससे गहराई रहती और घटिया निर्माण ना हो पाता। उन्होनें चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जिला प्रशासन के माध्यम से स्टापडैम के फाटक लगाने के लिए त्वरित प्रयास किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि छतरपुर जिले की सीमा में वारिश का पानी संरक्षित करने के प्रयास नाकाफी होने से सीमावर्ती जिले सागर,टीकमगढ़,दमोह और पन्ना सहित समूचे बुन्देलखंड सीमा का वर्षा जल बहकर यूपी सीमा मे चला जाता है। छतरपुर से सागर स्थांतरण होकर जाने वाले कलेक्टर संदीप जीआर ने स्टापडैम में फाटक लगाने निर्देश जारी करने की बात कही है। छतरपुर कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने भी अतिशीध्र सर्वे कराकर छतरपुर में पेयजल और सिंचाई के लिए प्राकृतिक जल का संरक्षण करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का दावा किया है।
अब देखना है कि बुंदेलखण्ड से यूपी सीमा में पानी का निरंतर पलायन रोकने के लिए प्रशासनिक दाबे कितने कारगर सिद्ध होते है और अरबों की लागत से बनी जल संरचनाएं लोगों के कंठ तर करने व किसानों के हित में धरती की प्यास बुझाकर बुन्देलखण्ड में समृद्धि के द्वार खोलकर अपना बजूद बरकरार रखते हुए औचित्य स्थापित कर पाती हैं या नहीं।
(Udaipur Kiran) / सौरव भटनागर