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वेदों का संदेश विश्व भर में पहुंचाने के संकल्प के साथ ऋषि मेला संपन्न

वेदों का संदेश विश्व भर में पहुंचाने के संकल्प के साथ ऋषि मेला संपन्न
वेदों का संदेश विश्व भर में पहुंचाने के संकल्प के साथ ऋषि मेला संपन्न

अजमेर, 20 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । वेदों का संदेश विश्व भर में पहुंचाने के संकल्प के साथ महर्षि दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय ऋषि मेला रविवार को संपन्न हो गया। विभिन्न वक्ताओं ने देश के समक्ष उपस्थित सभी चुनौतियों से निपटने के महर्षि दयानंद के बताए मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। परोपकारिणी सभा की ओर से पुष्कर रोड स्थित ऋषि उद्यान में आयोजित समारोह में अंतिम दिन स्वामी ओमानन्द सरस्वती एवं स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती सहित कई वैदिक विद्वानों ने संबोधित किया।

भाजपा नेता डॉ. सतीश पूनिया ने कहा कि महर्षि दयानंद ने हमें अनेक बड़ी सामाजिक कुरीतियों से मुक्त कराया। उनकी शिक्षाओं पर चलकर हम अपना जीवन सफल कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ऐसे महापुरुष हैं, जिनसे वे सर्वाधिक प्रभावित हैं। पूनिया ने कहा कि जिन महापुरुषों ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वे महर्षि दयानन्द जी और गुरु गोविंद सिंह जी हैं, दोनों के ही विचारों में एक साम्यता थी, ओज था। यह भारत की धरती का सौभाग्य कि हम उपनिषद, पुराण, इतिहास और विरासत के धनी है लेकिन वैदिक संस्कृति को किसी ने गति दी तो वह महर्षि दयानन्द ही हैं। उन्होंने संसार को वेदेां का महत्त्व बताया, वेदों की शक्ति बताई। आज पुरी दुनिया में यदी कोरोना से लड़ाई होती है तो आरोग्य के लिए वेद दिखते हैं, कोई रिसर्च करता है उसका आधार भी वेद ही होता है और इसलिए क्रण्वन्तो विश्वमार्यम् केवल एक छोटी पहचान नहीं है इस विश्व को इस देश को श्रेष्ठ बनने के लिए संस्कृति की तरफ लौटने और उसको पुनर्जीवित करने के लिए एक आधार है।

स्वामी सच्चिदानन्द ने कहा कि आर्य समाज का वर्तमान और भविष्य विषय बहुत गंभीर है, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय का कथन था कि आर्यसमाज दौड़ता है तो, हिन्दू चलता है, आर्य समाज चलता है तो हिंदू समाज बैठ जाता है, आर्य समाज बैठ गया तो हिंदू समाज सो जाएगा और जिस दिन आर्य समाज सो गया उस दिन हिंदुत्व दुनिया से खत्म हो जायेगा। आर्य समाज के भविष्य में ही सनातन और राष्ट्र का भविष्य संरक्षित है। आज हमारे देश में बड़े-बड़े विश्वविद्यालय होने के बावजूद दुनिया में हमारे भारत को कोई विश्व गुरु नहीं कहता। लेकिन जब वेद की शिक्षा गुरुकुलों का संचालन होता था, उस समय दुनिया हमारे देश के विद्वानों के चरणों में बैठकर आचार, व्यवहार और विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की जाती थी। उस समय ना तो विज्ञान की दुनिया में हमारा कोई सानी होता था और ना भौतिक संपत्ति में दुनिया में हमारा कोई सानी होता था। इस देश को लोग सोने की चिड़िया भी कहा करते थे और विश्व गुरु भी कहा करते थे। महर्षि दयानंद जी महाराज कहते थे भारत देश ऐसा सच्चा पारस मणि है जिसको छूने के साथ ही विदेशी लोग स्वर्णमयी अर्थात धनाढ्य हो जाते हैं। जब हमारे देश के पाठ्यक्रम में अकबर द ग्रेट, तैमूर लंग द ग्रेट, सिकंदर द ग्रेट बताया जाता था, आज उनकी करतुते खुल चुकी है, राणा प्रताप को हराया दिखाया गया और बार-बार अत्याचारी अकबर को विजेता दिखाया गया था, आज वहां हल्दीघाटी के अंदर भी शिलालेख बदले जा चुके हैं यह हमारे लिए गौरव की बात है। नालन्दा और तक्षशिला विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों में हमारे बहुमूल्य ग्रन्थों को जलाना हमारे साथ एक बहुत बड़ा षड्यंत्र था क्योंकि मेकाले का यह मानना था कि अगर किसी देश को बर्बाद करना चाहते हो तो उसके इतिहास और शिक्षा को मिटा दो, आज भी हमारे साथ यही षड़यन्त्र चल रहा है, अंग्रेजों द्वारा दी गई शिक्षानीति में हमारी सन्तानों को इस प्रकार की शिक्षा दी जा रही है कि बाहर से तो भारतीय दिखें लेकिन अन्दर से उनकी भावना विदेशी हो। अंदर से उसको भारतीय रीति रिवाज, संस्कृति, परंपराओं से कोई भी लेना-देना नहीं होगा, जो आज से ढाई सौ वर्ष पहले अंग्रेजों द्वारा यह बीज लॉर्ड मैकाले ने भारत की भूमि पर बोया, आज उसकी फसल हमारे सामने आ रही है। दाल, घी, दूध सबको शुद्ध चाहिए पर कभी हमने यह चिंतन नहीं किया कि संस्कृति और धर्म शुद्ध चाहिये या नहीं। आज समय है तो चाहिए की हम सब संगठित होकर वैदिक धर्म की रक्षा करे और अपने बच्चों और आने वाली पिढ़ियों को अपने धर्म के वैभव से रुबरु करवाएं ताकि नयी पीढ़ी सनातन वैदिक धर्म पर गौरवान्वित हो सके। हिंदू धर्म के लोगों के पास में पैसा बढ़ता है तो हम दुनिया के सामने अजूबे बनाने में विश्वास रखते हैं, मंदिर के छत्र, चौखटों और दीवारों पर चांदी व सोने की प्लेट चढ़ाते हैं, जब कि अन्य समुदाय के लोगों के पास में पैसा बढ़ता है तो वे अधिक से अधिक धन अपने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये लगाते हैं।

उन्होंने कहा कि सनातन वैदिक धर्म को अच्छे से जानने व समझने के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा लिखित सत्यार्थ प्रकाश सबसे सशक्त माध्यम है और आर्यसमाज को बचाने के लिए गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को बचाना अनिवार्य है। पूर्व लोकायुक्त सज्जन सिंह कोठारी ने अधक्षीय उद्बोधन में कहा कि आपका जो व्यक्तित्व है वह आपके गंभीर दायित्व के विवेकपूर्ण नैतिक तथा मानवीय मूल्यों की साधना का फल है। हम कौन थे, क्या हो गये और क्या होंगे अभी, आओ मिलकर के विचारें ये समस्याएं सभी। इन पंक्तियों को दौहराते हुए उन्होंने कहा कि हम जैसे ही थो$डा सा अतीत में जाकर देखेंगे महर्षि दयानंद ने अपने सांसारिक बंधनों को त्याग कर पूर्ण सत्य संन्यासी बनाकर सत्य विधाओं का अभ्यास और देशभर में भ्रमण कर वैदिक धर्म के पुर्नउद्धार का कार्य किया। कोठारी ने कहा कि आर्यसमाज का भविष्य सुधारने के लिये शिक्षा प्रणाली उत्कृष्ट हो, अधिक से अधिक बच्चों को गुरुकुल शिक्षा हेतु भेजा जाये, निकटतम आर्य समाज से सभी का जुड़ाव हो, अधिक से अधिक योग साधना शिविर होने चाहिए, महर्षि के जीवन से जागरुक प्रयासों को अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाना चाहिये। देवेंद्र पाल वर्मा ने कहा कि किसी भी देश अथवा संस्था का व्यक्तिव देखना है तो उसका अतीत क्या है ये देखना जरूरी है, महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना ब्रिटिश काल में उस वक्त में की थी जब बोलने की आजादी नहीं थी परंपराओं का निर्वाचन नहीं कर सकते, उस दौर में संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए स्वामी जी ने आर्य समाज की स्थापना कर कहा था कि वेदों की ओर लोटो। देश में आजादी का जो आंदोलन ल$डा गया, इतिहास गवाह है कि आर्य समाज का सर्वाधिक योगदान था। महर्षि दयानन्द के विचारों का ही प्रतिफल है कि आज देश की राष्ट्रपति से लेकर आईएएस, आईपीएस, वकील, डॉक्टर हर क्षेत्र में महिलाएं अग्रिणी हैं। उन्होंने कहा कि जिन चीजों के लिए आर्य समाजी जाना जाता है वही गुण आज भी आर्यसमाजी में विद्यमान होने चाहिए, हमे अपनी आवाज बनाए रखनी है तो पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ पहले की तरह मजबूती रखनी होगी। परोपकारिणी सभा के प्रधान महात्मा ओम मुनि, मंत्री कन्हैयालाल आर्य ने अतिथि का स्वागत कर स्मृति चिन्ह भेंट किया।

संचालन स्वामी ओमानांद सरस्वती ने किया। तीन दिवसीय ऋषि मेले के दौरान सनातन गौ सेवा समिति पाली के 23 कमांडो ने सुरक्षा व्यवस्था की कमान सम्भाली। दल के प्रमुख प्रेम कुमार आर्य के नेतृत्व में अंकित मेवा$डा, विनय आर्य सहित 23 सदस्य सुरक्षा व्यवस्था में 24 घण्टे लगे रहे। रात्रि में पहरा, ट्रैफिक व्यवस्था, अतिथियों के सामान की देखरेख, भोजनशाला, यज्ञशाला, मुख्यद्वार आदि पर हर समय कमाण्डो सजगता के साथ तैनात रहे। प्रेमकुमार आर्य ने बताया कि इन कमाण्डो को आर्यवीर दल के पाठ्यक्रम के अनुसार शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है, आर्यसमाज के उत्सवों के साथ आपदा या दुर्घटना के समय भी कमाण्डो सेवाएँ देते हैं साथ ही इन्हें योग्यता अनुसार आर्मी, अग्नवीर एवं सिक्योरिटी गार्ड के लिए तैयार किया जाता है।

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(Udaipur Kiran) / संतोष

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