Uttar Pradesh

भारतीय भाषा को नकारना राष्ट्रीयता के प्रति उदासीनता : न्यायमूर्ति गौतम चौधरी

सीएसजेएमयू में बोलते इलाहबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति गौतम चौधरी

कानपुर, 19 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । हिंदी में निर्णय लिखने का उद्देश्य कानून की भाषा आम आदमी के लिए समझ में हो। इसके साथ ही कुछ शब्द दूसरी भाषा में अनूदित नहीं हो सकते, इसलिए उन्हें मूल रुप में लिया गया। अपनी भारतीय भाषा को नकारना राष्ट्रीयता के प्रति उदासीनता है। भाषाएं विचारन आदान-प्रदान करने की चीजें है, जिससे सरल भाषा में अपनी न्यायिक भाषा को समाहित कर सके, ताकि जन मानस भी कानून को समझ सकें। सरल, त्वरित, न्यायवापी न्याय की आवश्यकता के लिए भारतीय भाषाओं में निर्णय होना जरुरी है, परन्तु निर्णयों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कोई विकल्प नहीं है। आधुनिकता की चमक से हम वास्तविकता से दूर होते जा रहे है, इसलिए हमें अपनी भाषा से जुड़ने की शुरुआत अपने हस्ताक्षर हिंदी में करके शुरु करें। यह बातें शनिवार को सीएसजेएमयू में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति गौतम चौधरी ने कही।

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू) के अटल बिहारी वाजपेयी स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज में शनिवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विधि एवं न्याय के क्षेत्र में प्रभाव पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। अटल बिहारी वाजपेई स्कूल ऑफ लीगल स्टडीज के निदेशक डॉ. शशिकांत त्रिपाठी ने भारतीय भाषाओं का महत्व बताते हुए कहा कि निचली अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग जरुरी है तभी आम जनता को न्याय मिलेगा।

उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंसेज के निदेशक डॉ. जी० के० गोस्वामी ने बताया हमें वार्तालाप की भाषा को आत्मसात करना चाहिए। देश में 120 भाषा और 20,000 बोलियां हैं लेकिन पूरे देश में एक सर्व सम्मत भाषा होनी चाहिए जो सभी लोग बोल और समझ सकें। हिंदी भाषा से जुड़े संस्मरण के माध्यम से बताया कि भाषा संप्रेषण का माध्यम है इसे बड़े पैमाने पर किया जाना चाहिए तथा हमें किसी एक भाषा में निपुणता रखनी चाहिए। उन्होंने बताया कृषि, विधि एवं मेडिसिन की व्यापक शब्दावली नहीं है, जिस कारण उन्हें क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन नहीं कर सकते। इसके लिए भाषा का लिए अनुसंधान संस्थान होना चाहिए ताकि भाषा का अनुवाद एक ही क्लिक में हो जाए।

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी ने बताया कि भाषा का सौंदर्य संवाद से है। हमें भाषा के प्रचार प्रसार एवं उसके पल्लवन के लिए प्रत्येक भाषा के साथ साथ प्राचीन भाषा संस्कृत एवं उसकी अपभ्रंश का ज्ञान होना चाहिए। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक हृदयविहीन माध्यम है जिससे नैसर्गिक बुद्धि का विकास रुक जाता है अतः हमें मानवीय पक्ष भी देखना चाहिए। विधि क्षेत्र में भाषाओं का बहुत महत्व है। भाषाओं का विधि एवं न्याय के क्षेत्र में विकास के कारण ही आज न्यायालयों में निर्णयों को हिंदी भाषा में अनूदित किया जा रहा है।

सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं भारतीय भाषा अभियान के राष्ट्रीय सह संयोजक कामेश्वर नाथ मिश्र ने भारत भाषा अभियान के अंतर्गत भारतीय भाषा के प्रसार के संघर्षपथ का वर्णन करते हुए कहा कि वर्ष 2004 से अतुल कुमार कोठारी द्वारा शिक्षा बचाव आंदोलन एवं भारतीय संस्कृति उत्थान के अंतर्गत भारतीय भाषाओं का संघर्ष शुरु हुआ जो आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में क्षेत्रीय भाषाओं में सभी विषयों का अध्यापन कार्य प्रारंभ हुआ।

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(Udaipur Kiran) / अजय सिंह

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