नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । दिल्ली के साकेत कोर्ट के सेशंस कोर्ट ने आपराधिक मानहानि के मामले में दोषी करार दिए गए नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर की सजा को चुनौती देने वाली याचिका पर आंशिक दलीलें सुनीं। एडिशनल सेशंस जज विशाल सिंह ने 14 नवंबर को अगली सुनवाई का आदेश दिया।
मेधा पाटकर की ओर से कोर्ट में आंशिक दलीलें पेश की गईं। वीके सक्सेना ने 4 सितंबर को अपना जवाब दाखिल किया था। सुनवाई के दौरान वीके सक्सेना की ओर से पेश वकील ने कोर्ट से मेधा पाटकर को आत्मसमर्पण करने का निर्देश देने का आग्रह करते हुए कहा था कि पाटकर की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसे खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि मेधा पाटकर की याचिका पर उनके हस्ताक्षर नहीं हैं।
एडिशनल सेशंस जज विशाल सिंह ने 27 जुलाई को जुडिशियल मजिस्ट्रेट के फैसले पर रोक लगाते हुए वीके सक्सेना को नोटिस जारी किया था। मेधा पाटकर ने जुडिशियल मजिस्ट्रेट की ओर से दी गई पांच महीने की कैद और दस लाख रुपये के जुर्माने की सजा को सेशंस कोर्ट में चुनौती दी है। जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने 1 जुलाई को मेधा पाटकर को सजा सुनाई थी। जुडिशियल मजिस्ट्रेट की कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में अधिकतम सजा दो साल की होती है लेकिन मेधा पाटकर के स्वास्थ्य को देखते हुए पांच महीने की सजा दी जाती है। कोर्ट ने इस सजा पर 30 दिनों तक निलंबित रखने का भी आदेश दिया था।
कोर्ट ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत दोषी करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये साफ हो गया है कि आरोपी मेधा पाटकर ने सिर्फ प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए वीके सक्सेना के खिलाफ गलत जानकारी के साथ आरोप लगाए। बता दें कि 25 नवंबर 2000 को मेधा पाटकर ने अंग्रेजी में एक बयान जारी कर वीके सक्सेना पर हवाला के जरिये लेनदेन का आरोप लगाया था और उन्हें कायर कहा था। मेधा पाटकर ने कहा था वीके सक्सेना गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहे थे। ऐसा बयान वीके सक्सेना की ईमानदारी पर सीधा-सीधा हमला था।
मेधा पाटकर ने कोर्ट में अपने बचाव में कहा था कि वीके सक्सेना वर्ष 2000 से झूठे और मानहानि वाले बयान जारी करते रहे हैं। वीके सक्सेना ने 2002 में उन पर शारीरिक हमला भी किया था जिसके बाद मेधा ने अहमदाबाद में एफआईआर दर्ज कराया था। मेधा ने कोर्ट में कहा था कि वीके सक्सेना कारपोरेट हितों के लिए काम कर रहे थे और वे सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों की मांग के खिलाफ थे।
मेधा पाटकर के खिलाफ वीके सक्सेना ने आपराधिक मानहानि का केस अहमदाबाद की कोर्ट में 2001 में दायर की थी। गुजरात के ट्रायल कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया था। बाद में 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई गुजरात से दिल्ली के साकेत कोर्ट में ट्रांसफर कर दी थी। मेधा पाटकर ने 2011 में अपने को निर्दोष बताते हुए ट्रायल का सामना करने की बात कही। वीके सक्सेना ने जब अहमदाबाद में केस दायर की थी, उस समय वो नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे।
(Udaipur Kiran) /संजय
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम