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पर्यावरण संरक्षण के लिए पूर्वजों की पद्धति की ओर लौटने की आवश्यकता : डॉ मोहन भागवत

शुक्रवार को सूरत के वेसू में आयोजित पर्यावरण गोष्ठी में संबोधन करते राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत।

-आचार्य महाश्रमण ने अहिंसा और संयम की चेतना के जरिए पर्यावरण संरक्षण का मार्ग बताया

-देश के कई विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर की मौजूदगी में पर्यावरण पर गोष्ठी का आयोजन

सूरत, 17 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । शहर के वेसू स्थित भगवान महावीर यूनिवर्सिटी की ओर से गुरुवार को पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में ‘हरित’ कार्यक्रम के अंतर्गत ‘वाइस चांसलर कॉनक्लेव’ का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से वाइस चांसलर उपस्थित रहे। आयोजन में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत भी मौजूद रहे।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में पर्यावरण पर बात तो बहुत हो रही है, उसके लिए कुछ करने लायक बातों को आगे बढ़ाने का प्रयास हो। मनुष्य को विज्ञान नामक हथियार मिलने बाद वह अपनी कामनाओं के वशीभूत होकर मर्यादा का लंघन कर स्वयं को दुनिया का मालिक मान बैठा था लेकिन आज विज्ञान भी मानने लगा है कि कोई ऐसी शक्ति है जो सृष्टि का संचालन कर रही है। प्रकृति के साथ चलने के बात बहुत पहले शंकराचार्यजी ने बताई थी। हमारे ऋषि, महर्षि ने इतनी सुन्दर व्यवस्था बनाई थी, उस ओर हमें पुनः धीरे-धीरे तर्कसंगत रूप में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आप सभी गुरुजन यहां उपस्थित हैं तो बच्चों को उन पुरातन तथ्यों से अवगत कराएं और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर चलने के लिए प्रेरित करें।

आचार्य महाश्रमण ने कहा कि हमारे यहां पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, वनस्पति आदि सभी को जीव माना गया है। इसलिए इन सभी तत्त्वों के प्रयोग में संयम और अहिंसा की चेतना हो तो पर्यावरण की समस्या से बचा जा सकता है। शिक्षा विभाग की इतनी विभूतियों का एक साथ मिलना विशिष्ट बात है। शिक्षा से जुड़े हुए लोग विद्यार्थियों को ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कार के प्रति भी जागरूक करें। उनके मानसिक और भावात्मक विकास के लिए योग, ध्यान का भी अभ्यास हो, अहिंसा और संयम की चेतना का विकास हो तो पर्यावरण और समाज की सुरक्षा हो सकती है। यहां एक अहिंसा का सूत्र दिया गया है कि प्राणी जगत की समस्त आत्माएं समान होती हैं। इसे जानकर समूचे जीव जगत को हिंसा से दूर हो जाने का प्रयास करना चाहिए। प्रत्येक आत्मा के असंख्य अवयव होते हैं। आत्मा का फैलाव हो तो समूचे जगत में एक ही आत्मा व्याप्त हो जाए और संकुचित हो तो अति सूक्ष्म जीव में भी समाहित हो जाती है। दूसरी बात है कि सभी प्राणियों को सुख प्रिय होता है, दुःख कोई प्राणी नहीं चाहता। सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता, इसलिए सभी को जीने का अधिकार होना चाहिए।

इससे पूर्व कार्यक्रम का आरंभ आचार्य महाश्रमण के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष संजय सुराणा ने पर्यावरण संरक्षण गतिविधि केन्द्र-रायपुर के राष्ट्रीय सह संयोजक राकेश जैन ने आज के विषय पर अपनी अभिव्यक्ति दी। बीकानेर टेक्निकल युनिवर्सिटी के संस्थापक व वाइस चांसलर प्रोफेसर एचडी चारण ने इस कॉन्क्लेव में हुए विभिन्न विचारों आदि के विषय की जानकारी दी। इसके उपरान्त उपस्थित वाइस चांसलरों और आरएसएस प्रमुख के मध्य जिज्ञासा-समाधान का भी क्रम चला। इस कार्यक्रम का संचालन ऋषि युनिवर्सिटी के वाइस चासंलर शोभित माथुर ने किया।

(Udaipur Kiran) / बिनोद पाण्डेय

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