गुजवि स्वयंसेवकोें ने किया किया ‘धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र’ का सांस्कृतिक भ्रमण
हिसार, 14 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना के सौजन्य से राष्ट्रीय एकीकरण शिविर में देशभर से आए स्वयंसेवकों व कार्यकारी अधिकारियों ने ‘धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र’ का सांस्कृतिक भ्रमण किया। यह तीर्थ स्थल हिसार से 170 किलोमीटर दूर स्थित है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने सोमवार को इस सांस्कृतिक भ्रमण के लिए स्वयंसेवकों को बधाई दी और कहा कि ‘कुरुक्षेत्र’ एक महान ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थान है, जिसे वेदों और वैदिक संस्कृति के साथ जुड़े होने के कारण सभी देशों में श्रद्धा के साथ देखा जाता है।
यह वह भूमि है जिस पर ‘महाभारत’ की लड़ाई लड़ी गई थी और भगवान ‘श्रीकृष्ण’ ने अर्जुन को ज्योतिसर में कर्म के दर्शन का उचित ज्ञान दिया था। उन्होंने कहा कि इस तरह के सांस्कृतिक भ्रमण से स्वयंसेवकों को देश की संस्कृति की जानकारी मिलेगी तथा ग्रंथ वेदों का भी ज्ञान प्राप्त होगा।
स्वयंसेवक हरियाणा की संस्कृति से भी रूबरू होंगे। राष्ट्रीय एकीकरण शिविर के इस सांस्कृतिक भ्रमण की अध्यक्षता डॉ. अंजू गुप्ता ने की। प्रो. अंजू गुप्ता ने स्वयंसेवकों को बताया कि धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में देवताओं ने यज्ञ किया था। राजा कुरु ने भी यहां तपस्या की थी।
यज्ञ आदि धर्ममय कार्य होने से तथा राजा कुरु की तपस्या भूमि होने से इसको ‘धर्मभूमि कुरुक्षेत्र’ कहा गया है। यह एक ‘तीर्थ भूमि’ भी है, जिसमें प्राणी जीते जी पवित्र कर्म करके अपना कल्याण कर सकते हैं। पावन नगरी कुरुक्षेत्र में स्थित ‘ज्योतिसर’ एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में है, जो महाकाव्य ‘महाभारत युद्ध’ से पहले भगवान ‘श्रीकृष्ण’ द्वारा ‘अर्जुन’ को भागवत गीता के दिव्य उपदेश की याद दिलाता है।
फिर स्वयंसेवक ‘श्रीकृष्णा संग्रहालय’ पर पहुंचे। श्रीकृष्ण संग्रहालय, कृष्ण, कुरुक्षेत्र और महाभारत विषय पर एक अकेला संग्रहालय है, जिसमें हरियाणा, मथुरा और डूबे हुए शहर द्वारका से बरामद पुरातात्विक कलाकृतियों का एक दुर्लभ संग्रह है। संग्रहालय की पुरातात्विक दीर्घा में हरियाणा के विभिन्न प्राचीन-ऐतिहासिक स्थलों से बरामद पांच हजार वर्षों की विरासत वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय नौ दीघाअरं में फैला हुआ है और इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से एकत्र की गई मूर्तियों, चित्रों, पांडुलिपियों और कृष्ण-विष्णु विषय पर अन्य वस्तुओं का एक समृद्ध भंडार है। पुरातत्व और मल्टीमीडिया महाभारत और गीता दीर्घा संग्रहालय के प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं।
‘सिख’ आतिथ्य सेवा की भावना का अनुभव करते हुए स्वयंसेवक सामुदायिक भोजन के लिए ‘गुरुद्वारा साहिब’ पातशाही 6, कुरुक्षेत्र में एकत्र हुए। दोपहर का भोजन, लंगर एकता और करुणा के मूल्यों को दर्शाता है, जो शरीर और आत्मा दोनों को संतोष प्रदान करता है।
इसके बाद स्वयंसेवक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के ‘धरोहर’ पहुंचे और हरियाणा राज्य की समृद्ध विरासत को उजागर करते हुए एक अद्भुत प्रदर्शनी के माध्यम से हरियाणा की जीवंत सांस्कृतिक विरासत को दर्शकों के सामने गर्व से प्रदर्शित किया। आकर्षक प्रदर्शन में पारंपरिक कलाकृतियां शामिल थीं, जिनमें रथ और गाड़ियों जैसे पुराने परिवहन, बैल गाड़ी और हल जैसे कृषि उपकरण, प्राचीन सिंचाई प्रणाली और रंगीन क्षेत्रीय पोशाक शामिल थे। साथ ही हरियाणा की शान पगड़ी बहुत आकर्षण का केंद्र थी। प्रसिद्ध कलाकार द्वारा बनाई गई हरियाणा की भीति चित्र, चूड़ियों का विकास किस प्रकार से पहले पत्थर, लाख और कांच की चूड़ियों का निर्माण किया गया। हरियाणा की खाट, कस्सी, बर्तन, कुआं, पेटी जब नई नवेली दुल्हन को अपना सामान रखने के लिए उपहार स्वरूप दी जाती थी और भी विभिन्न परंपराओं को प्रदर्शनी स्वयंसेवकों द्वारा देखी गई। यह प्रभावशाली व्यवस्था हरियाणा के गौरवशाली अतीत को रेखांकित करती है, जो आने वाली पीढि़यों के लिए अपनी परंपराओं को संरक्षित करती है। हम इस प्रदर्शनी के पीछे के दूरदर्शी लोगों को सलाम करते हैं, जो राज्य की विविध सांस्कृतिक बनावट और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में इसके महत्व का प्रमाण है।
इस ‘राष्ट्रीय एकीकरण शिविर’ के सांस्कृतिक भ्रमण के दौरान विभिन्न राज्यों से आए 200 स्वयंसेवकों, 20 कार्यकारी अधिकारियों और विश्वविद्यालय के कार्यकारी अधिकारियों ने इस आकर्षक, सुंदर व मनमोहक भ्रमण का भरपूर आनंद लिया।
(Udaipur Kiran) / राजेश्वर