जयपुर, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । सीता हरण को रावण का षड्यंत्र, जटायु का बलिदान, शबरी की श्रद्धा, राम सुग्रीव की मित्रता और समुद्र पार जाकर हनुमान द्वारा लंका दहन, प्रभावी संवादों के साथ ये सभी दृश्य गुरुवार को मध्यवर्ती के मंच पर साकार हुए। मौका रहा जवाहर कला केन्द्र की ओर से जारी श्री रामलीला महोत्सव के तीसरे दिन का। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक अशोक राही के निर्देशन में हुई रामलीला में बड़ी संख्या में कला प्रेमियों ने हिस्सा लिया। खास बात यह रही की प्रस्तुति के दौरान मंद मंद बारिश होती रही फिर भी ओपन एयर थिएटर दर्शकों से खचाखच भरा रहा। कलाकारों की प्रस्तुति ने दर्शकों को बांधे रखा। दर्शकों ने हर चौपाई और गीत पर ताली बजाकर कलाकारों का साथ दिया और हौसला अफजाई की।
नाट्य प्रस्तुति की शुरुआत से पूर्व दर्शकों ने एक स्वर में श्री राम की जयकार के साथ कलाकारों का मंच पर स्वागत किया। दर्शकों का उत्साह देखते ही बना। रावण ने सीता के हरण के लिए मारीच के पास पहुंचा। ‘राम से बैर लेने की सोचो भी मत, इसी में तुम्हारी भलाई है’, रावण की षड्यंत्र को जान मारीच ने कुछ इस तरह चेताया। रावण के क्रोध के आगे विवश मारीच स्वर्ण मृग का रूप धरकर सीता के समक्ष पहुंचा। ‘ओ दुष्ट खड़ा रह खबरदार, स्वामी अब आने वाले हैं, जो धनुष तोड़कर लाए हैं वो ही मेरे रखवाले हैं’ रावण को चेतावनी देते सीता के शब्दों ने नारी की गरीमा और शक्ति का बखान किया।
शबरी की श्रद्धा हुई स्वीकार…
मार्ग में रावण का सामना होता है जटायु से। संगीत और नृत्य के संयोजन से रावण-जटायु युद्ध को आकर्षक तरीके से दर्शाया गया। सीता की खोज में निकले राम व लक्ष्मण जब जटायु के पास पहुंचते हैं तो वह दोनों का मार्ग प्रशस्त करता है। जटायु के बताए मार्ग पर निकले रघुवंशियों ने शबरी के चखे हुए बेर खाकर उसकी श्रद्धा को स्वीकार किया। ‘पृथ्वी पर कोई न ऊंचा है न कोई नीचा है, सब समान हैं’, इन संवादों के जरिए राम ने समाज को समानता का संदेश दिया।
मित्रता ने दूर की राम की विकलता
राम और हनुमान संवाद में भक्त और स्वामी के बीच के संबंध को स्थापित किया गया। राम अपने मित्र सुग्रीव की सहायता और उसके साथ हुए अन्याय का विरोध कर उसे न्याय दिलाते हैं। सुग्रीव-बाली युद्ध की प्रस्तुति भी सजीव जान पड़ी। इसके बाद सुग्रीव मित्र धर्म का निर्वाह करने का मौका न गवाते हुए सीता को ढूंढने में पूरी सहायता करते हैं।
हनुमान के शब्दों से बढ़ा सीता का विश्वास
उधर, हनुमान अपने प्रभु की आज्ञा से सीता को तलाशने निकलते हैं। लंका पहुंचकर हनुमान सीता को अपने प्रभु की दी गई निशानी दिखाते हैं। ‘कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास, जाना मन क्रम वचन यह कृपासिंधु कर दास’, के जरिए सीता के विश्वास को दर्शाया गया। संगीत और प्रकाश का आकर्षक प्रयोग कर हनुमान के अशोक वाटिका उजाड़ने और लंका दहन का जीवंत चित्रण किया गया।
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(Udaipur Kiran)