उज्जैन, 10 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । शुक्रवार को शारदीय नवरात्र की महाष्टमी पर प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी चौबीस खंबा स्थित देवी महामाया और महालया को कलेक्टर द्वारा पूजन करके, मदिरा की धारा चढ़ाई जाएगी। इसके बाद नगर पूजा का दौर शुरू होगा, जो शाम तक चलेगा। नगर पूजा का समापन महाकाल मंदिर के शिखर पर ध्वज अर्पित कर होगा। राजस्व अमले ने तैयारियंा पूरी कर ली है। गुरूवार रात्रि में पूरी,भजिये बनने का काम शुरू हो गया था। यह महात्म्य है नगर पूजा का यह प्राचीनकाल से मान्यता है कि उज्जयिनी नगरी में नगर पूजा राजा विक्रमादित्य के समय राजकीय पूजा का रूप ले चुकी थी।
इसकी पौराणिक कहानी –
उज्जयिनी में एक दिन का राजा होता था। प्रतिदिन जब राजा शयन करता तो रात्रि में देवियां उसका भोग लेती थी। इस कारण नगर में रोजाना किसी एक व्यक्ति को राजा बनाया जाता था। एक दिन एक गरीब माता-पिता के इकलोते बेटे का क्रम राजा बनाने हेतु आया तो वह रोने लगा। विक्रमादित्य उस गरीब के यहां रात गुजारने के लिए ठहरे थे। उन्होने उसकी पूरी बात सुनी तो चौंके। उन्होने माता-पिता से कहाकि तुम निश्चिंत रहो, तुम्हारे पुत्र की जगह मैं एक दिन का राजा बनूंगा। विक्रमादित्य ने पता किया कि देवियां भोग लेने के लिए राजमहल तक किन मार्गो से होकर आती हैं।
उक्त पूरे मार्ग में उन्होने देवियों की रूचिकर भोज्य सामग्री रखवा दी। साथ ही मदिरा, इत्र, वस्त्र, आभूषण भी रखवाए। रात्रि में विक्रमादित्य राजा के शयन कक्ष में गए और पलंग के नीचे सो गए। पलंग पर मिठाईयां रखवा दी। देवियां रास्तेभर भोजन करते आई और जब भोजन कक्ष में प्रवेश किया तो मिठाईयां देखकर प्रसन्न हुई। इसी समय पलंग के नीचे से विक्रमादित्य बाहर आए और देवियों को प्रमाण किया। देवियों ने प्रसन्न होकर उनसे कहाकि वरदान मांगे? विक्रमादित्य ने कहाकि वे अब इसप्रकार से हर एक दिन राजा का भोग लगाना बंद करे। वह उनके लिए भोजन की व्यवस्था करेंगे। इसप्रकार उज्जयिनी पर विक्रमादित्य का राज्य रहा और वे हर वर्ष शारदीय नवरात्र में महाष्टमी पर नगर पूजा करके देवियों को खुश रखने लगे। यह परंपरा आज भी कायम है। स्वतंत्रता के बाद से कलेक्टर ने यह जिम्मेदारी संभाली और जिला प्रशासन की ओर से नगर पूजा प्रारंभ हुई। अब कलेक्टर स्वयं देवी महामाया तथा महालया को मदिरा का भोग लगाते हैं। 27 किमी चलती है मदिरा की धारा नगर पूजा के दौरान 27 किलोमीटर तक मदिरा की धार चलती है ।
प्रशासन की ओर से एसडीएम,तहसीलदार, पटवारी, कोटवार पूजा करते जाते हैं। यात्रा में चौबीसखंबा मंदिर पर महामाया और महालया, अद्र्धकाल भैरव कालियादेह दरवाजा, कालिकामाता, नयापुरा स्थित खूंटपाल भैरव, चौसठयोगिनी मंदिर,लाल बई, फूल बई, शतचण्डी देवी, राम-केवट हनुमान, नगरकोट की रानी, नाकेवाली दुर्गा मां, खूंटदेव भैरवनाथ, बिजासन मंदिर, चामुण्डा माता मंदिर, पद्मावती मंदिर, देवासगेट भैरव, इंदौरगेटवाली माता, ठोकरिया भैरव, इच्छामन भैरव, भूखीमाता, सती माता, कोयला मसानी भैरव, गणगौर माता, श्मशान भैरव, सत्ता देव, आशा माता, आज्ञावीर बेताल भैरव, गढ़कालिका, हांण्डीफोड़ भैरव की पूजा प्रमुख रूप से की जाती है। इन्हे चढ़ता है चोला/श्रृंगार सामग्री यात्रा के दौरान भैरव एवं हनुमान मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है वहीं देवियों को सुहागिन की श्रृंगार सामग्री, चुनरी भी अर्पित की जाती है।
पूजा सामग्री के प्रकार तेल के डिब्बे, सिंदूर, चांदी के वर्क, कुमकुम, मेहंदी, चूडिय़ां, चूंदड़ी, सोलह श्रृंगार के सेट, चमेली के तेल की शिशी, नारियल, चना का बाकल, कोडिय़ां, पूजा की सुपारी, सिंघाड़ा सूखा, लाल नाड़ा, लाल कपड़ा, गोटा किनारी, गुगल, अगरबत्ती, कोरे पान डण्ठलवाले, कपूर, भजिये, पूरी, दही, दूध, शकर, नीबू, काजल डिब्बी, बिंदी, तोरण, लाल कपड़े के झण्डे, जनेऊ, मिट्टी की हाण्डी, पीतल के लोटे जिनके पेंदे में छेद होती है तथा मदिरा की धारा जिससे चलती है। साथ ही मदिरा की बोतलें। ऐसे चलता है कारंवा शुक्रवार सुबह राजस्व अमला चौबीसखंबा माता मंदिर पहुंचेगा।
यहां कलेक्टर शासकीय पूजा करेंगे और देवी को मदिरा की धार चढ़ाएंगे। इसके बाद कोटवार झण्डा लेकर, ढोली के साथ बरबाकल याने भोजन एवं मदिरा लेकर चलेंगे। सबसे आगे पेंदे में छेद वाला लोट लेकर कोटवार चलेगा। लोटे के पेंदे के छेद में एक कपड़ा लगा होगा। लोटे में मदिरा रहेगी। मदिरा पेंदे से टपकती जाएगी। लोटा कभी खाली नहीं रखा जाता है। मदिरा कम होने पर उसमें डाली जाती है। यह क्रम पूरे 27 किलोमीटर तक, रात्रि करीब 8 बजे तक चलेगा। इसके बाद महाकाल मंदिर पहुंचकर प्रशासन की ओर से शिखर ध्वज बदला जाएगा।
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(Udaipur Kiran) / ललित ज्वेल