वाराणसी, 07 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन सोमवार को जैतपुरा बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर स्थित स्कंद माता के दरबार में श्रद्धालु नर-नारियों ने हाजिरी लगाई। दरबार में भोर से ही दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु कतारबद्ध होने लगे। रात लगभग तीन बजे के बाद मातारानी का श्रृंगार और मंगला आरती कर मंदिर का पट आम श्रद्धालुओं के लिए खुल गया। दरबार में पराअम्बा के विग्रह की एक झलक पाकर श्रद्धालु निहाल हो गए। इस दौरान मंदिर परिसर में मातारानी का जयकारा गूंजता रहा। माता रानी की कृपा से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है। इसलिए मां के दरबार में बच्चों और युवाओं की भीड़ दर्शन पूजन के लिए आती रही।
नवरात्र के पांचवें दिन नगर के अन्य देवी मंदिरोें दुर्गाकुण्ड स्थित मां कूष्मांडा, मां संकठा मंदिर के करीब आत्माविशेश्वर मंदिर परिसर में मां कात्यायनी मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप कालिका गली स्थित काली मंदिर, मां अन्नपूर्णा मंदिर, गोलघर मैदागिन में सिद्धिमाता मंदिर, लक्सा स्थित महालक्ष्मी मंदिर, भदैनी स्थित मां महिषासुर मर्दिनी, लहुराबीर स्थित गायत्री माता मंदिर, शीतलाघाट स्थित शीतलादेवी, त्रिदेव मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शन पूजन के लिए जुटी रही। माता स्कंद देवी कार्तिकेय की माता है। काशी खंड, स्कंद पुराण में देवी का वर्णन किया गया है। इनकी पूजा से बुद्धि, वात्सल्य और प्रेम की प्राप्ति होती है। स्कंद माता को वात्सल्य की मूर्ति भी कहा जाता है। संतान प्राप्ति के लिए मां स्कंद माता की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि स्कंद माता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी साधना से जातक को अलौकिक तेज प्राप्त होता है। मां अपने भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार भी खोलती हैं। मां स्कंदमाता के साथ-साथ भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। स्कंद माता की चार भुजाएं हैं। माता दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं। मां कमल के आसन पर विराजती है। इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। मां का वाहन सिंह है। मां का यह स्वरूप सबसे कल्याणकारी होता है।
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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी