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न्याय कोई जादुई छड़ी नहीं, यह चरणबद्ध तरीके से होता है, हाई कोर्ट की टिप्पणी

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कोलकाता, 06 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । कलकत्ता हाई कोर्ट ने जयनगर में नौ वर्षीय बच्ची की हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, न्याय कोई जादुई छड़ी नहीं है, यह चरणबद्ध तरीके से होता है। रविवार को इस मामले की आपातकालीन सुनवाई के दौरान न्यायाधीश तीर्थंकर घोष ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि कई लोग सोचते हैं कि जिसे वे दोषी मानते हैं, उसी को सजा दी जानी चाहिए। यह विचार न्याय और कानूनी प्रक्रिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

मृतक बच्ची के पिता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में किसी केंद्रीय अस्पताल में पोस्टमॉर्टम की मांग की थी, जिसे मानते हुए पुलिस ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम के निर्देश पर रविवार को इस मामले की सुनवाई हुई। अदालत ने पुलिस प्रशासन से यह भी सवाल किया कि बच्ची की उम्र 10 साल से कम होने के बावजूद पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज क्यों नहीं किया गया। इसके बाद पुलिस को पॉक्सो एक्ट जोड़ने का निर्देश दिया गया।

सुनवाई के दौरान मृतक बच्ची के पिता की ओर से वकील बिल्वदल भट्टाचार्य और मां की ओर से वकील शमीम अहमद ने अपनी दलीलें दीं। बिल्वदल ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की, जबकि शमीम अहमद ने त्वरित न्याय की अपील की। दोनों वकीलों की दलीलों के बाद, न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि न्यायिक प्रक्रिया एक निर्धारित प्रणाली के तहत चलती है और इसे पूरा होने में समय लगता है।

शनिवार को जयनगर, दक्षिण 24 परगना में नौ वर्षीय बच्ची के बलात्कार और हत्या के बाद पूरे इलाके में भारी तनाव था। शुक्रवार रात को बच्ची का शव उसके घर से एक किलोमीटर दूर एक जलाशय से मिला था। इसके बाद शनिवार सुबह से ही विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। परिवार और स्थानीय लोगों का कहना था कि बच्ची के लापता होने के बाद उन्होंने पुलिस को सूचना दी थी, लेकिन पुलिस की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस ने हालांकि इन आरोपों से इनकार किया और एक युवक को गिरफ्तार किया है।

राज्यभर में, आरजी कर अस्पताल मामले के बाद लोग तेजी से न्याय की मांग करते हुए सड़कों पर उतर आए हैं। विरोध प्रदर्शनों में ‘वी वांट जस्टिस’ के नारे गूंज रहे हैं, और कुछ मामलों में दोषियों को फांसी देने की मांग की जा रही है। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों ने बार-बार स्पष्ट किया है कि न्याय प्रक्रिया चरणबद्ध होती है और इसमें समय लगता है। न्याय की इस प्रक्रिया में भावनाओं का कोई स्थान नहीं होता।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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