-77वें निरंकारी संत समागम की सेवाओं
का विधिवत शुभारंभ
-इस वर्ष के समागम का विषय है विस्तार,
असीम की ओर
सोनीपत, 6 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । इस संसार
में अनेक प्रकार के लोग रहते हैं, जिनकी अलग-अलग भाषा, वेश-भूषा, खान-पान, जाति, धर्म
और संस्कृति आदि हैं। पर इतनी विभिन्नताओं के रहते भी हम सब में एक बात सामान्य है
कि हम सब इंसान हैं। चाहे हमारा रंग, वेश, देश या खान-पान कैसा भी हो, सबकी रगों में
एक सा रक्त बहता है और सब एक जैसी सांस लेते हैं। हम सब परमात्मा की संतान हैं। इस
भाव को अनेक संतों ने समय-समय पर समस्त संसार, एक परिवार के सन्देश के रूप में व्यक्त
किया है।
पिछले
लगभग 95 वर्षों से संत निरंकारी मिशन इस संदेश को न केवल प्रेषित कर रहा है, बल्कि
सत्संग और समागम के माध्यम से इसका जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहा है। मिशन के लाखों
भक्त इस वर्ष भी 16, 17 और 18 नवंबर 2024 को समालखा-गन्नौर, हलदाना बॉर्डर स्थित संत
निरंकारी आध्यात्मिक स्थल में होने वाले 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में भाग
लेकर मानवता के महाकुम्भ का हिस्सा बनने जा रहे हैं। यहाँ देश-विदेश से आने वाले भक्त
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और सत्कारयोग निरंकारी राजपिता रमित जी के पावन दर्शन
प्राप्त करेंगे और सत्संग की शिक्षाओं से अपने मन को उज्जवल बनाने का प्रयास करेंगे।
इस संत
समागम की भूमि को तैयार करने की सेवा का शुभारंभ रविवार को सतगुरु माता सुदीक्षा जी
महाराज और निरंकारी राजपिता जी के कर-कमलों द्वारा किया गया। इस अवसर पर मिशन की कार्यकारिणी
के सभी सदस्य, केंद्रीय सेवादल के अधिकारी, और अन्य हज़ारों अनुयायी उपस्थित रहे।
600 एकड़ में फैले इस विशाल समागम स्थल पर लाखों संतों के लिए रहने, खाने-पीने, स्वास्थ्य,
और आने-जाने की व्यवस्थाएं की जाती हैं। इसके लिए भक्तजन निष्काम भाव से एक महीने पूर्व
से ही सेवा में जुट जाते हैं।
सतगुरु
माता जी ने सत्संग को संबोधित करते हुए कहा कि सेवा करते समय भेदभाव की दृष्टि नहीं
रखनी चाहिए, बल्कि इसे सदैव निरिच्छत और निष्काम भाव से करना चाहिए। सेवा तब वरदान
साबित होती है जब उसमें कोई किंतु-परंतु नहीं होता। सेवा का कोई समय बंधन नहीं होना
चाहिए कि केवल समागम के दौरान ही करनी है। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसे
अगले समागम तक भी जारी रखना चाहिए। निरंकारी
संत समागम एक दिव्य उत्सव है, जिसकी प्रतीक्षा हर भक्त वर्ष भर करता है। यह ऐसा उत्सव
है जहाँ मानवता, प्रेम, करुणा, विश्वास, और समर्पण के भाव असीम परमात्मा के ज्ञान से
सुशोभित होते हैं।
—————
(Udaipur Kiran) परवाना