-कोर्ट ने कहा, नहीं बनता षड्यंत्र व अमानत में ख़यानत का केस
-कोर्ट ने धन के लालच को लेकर दर्ज मामले में गरूण पुराण के श्लोक का दिया उद्धरण
प्रयागराज, 01 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मां द्वारा अपने ही बेटे बहू के खिलाफ षड्यंत्र, अमानत में ख़यानत व कपट के आरोप में दर्ज कराये आपराधिक केस में सी जे एम आगरा द्वारा जारी सम्मन आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही छोटे बेटे की मौत पर 9 वर्षीय नाबालिग बच्ची को मिली एक करोड़ की बीमा राशि को उसके बालिग होने तक सुरक्षित रखने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में गरूण पुराण के एक श्लोक का उद्धरण दिया कि “लोभ मूलानि पापानि संकटानि तथैव च। लोभात्प्रवर्तते वैरमति लोभाद्विनश्यति।।
यानि धन के लालच में आपराधिक केस कायम किया गया।
कोर्ट ने कहा कि याचियों बेटे बहू के खिलाफ उनकी मां के केस पर बहन ने पेश होकर बयान दिया कि कोई धोखाधड़ी नहीं की गई है। याची ने बच्ची को मिले धन को भविष्य सुरक्षित करने के लिए बेहतर स्कीम में पैसे जमा किए हैं। वह भी शिकायतकर्ता मां की सहमति से। मां पर जीएसटी के तहत बकाया वसूली कार्रवाई की जा रही है। उसे भी बेटे की बीमा राशि से 50 लाख मिला है जो पोस्ट आफिस में जमा है। जी एस टी विभाग ने खाता सीज कर दिया है। जिस पर कोर्ट ने विभिन्न स्कीमों में जमा राशि का मूल दस्तावेज सील कवर महानिबंधक कार्यालय में जमा करा दिया और आदेश दिया कि मां के खिलाफ जी एस टी वसूली कार्रवाई का बच्ची के एक करोड़़ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
कोर्ट ने जिलाधिकारी आगरा व एस डी एम जलेसर को जरूरी कदम उठाने का आदेश दिया है। साथ ही सभी को जिलाधिकारी के समक्ष पेश होने, बच्ची को पूरी जानकारी देने तथा चार हफ्ते में महानिबंधक को रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। याचिका को जिलाधिकारी की रिपोर्ट के साथ छह हफ्ते बाद पेश करने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने विवेक कुमार गोयल व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि उन्होंने कोई षड्यंत्र या गबन नहीं किया है। एक करोड़ में से बच्चे के भविष्य के लिए 34 लाख रूपये विभिन्न स्कीमों में जमा किया है। शेष राशि खाते में जमा है। उनके खिलाफ झूठा केस दर्ज किया गया है।
मालूम हो कि मां द्वारा दर्ज कम्प्लेंट केस में बयान दर्ज होने के बाद सी जे एम ने याचियों को सम्मन जारी किया। जिसके खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी को स्वीकार कर अपर सत्र अदालत ने सम्मन रद्द कर मजिस्ट्रेट को फिर से आदेश देने का निर्देश दिया। इसके बाद मजिस्ट्रेट ने याची पति को धारा 406 व याची पत्नी को धारा 406 व 120बी के तहत सम्मन जारी किया। आरोप लगाया गया कि याची ने मां के नाम खाता खोला और रूपये अपनी पत्नी के खाते में स्थानांतरित करा लिए। किंतु यह सही नहीं पाया गया।
कोर्ट ने कहा याचीगण के खिलाफ आपराधिक न्यास भंग व षड्यंत्र का केस नहीं बनता और शिकायतकर्ता मां को जी एस टी वसूली के खिलाफ कानून का सहारा लेने को कहा है। किंतु बच्ची के हक में मिली एक करोड़ राशि को सुरक्षित कर दिया है।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे