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तन्त्र एक प्रक्रिया है, जबकि मन्त्र एक साधन : सुरेश सोनी

जपसूत्रम् ग्रन्थ के विमोचन कार्यक्रम में अतिथि: फोटो बच्चा गुप्ता

—स्वामी प्रत्यगात्मानन्द सरस्वती प्रणीत जपसूत्रम् ग्रन्थ का विमोचन

वाराणसी, 29 सितम्बर (Udaipur Kiran) । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी ने कहा कि लोक में तन्त्र के विषय में जो धारणा है वह अपूर्ण है। हमारे शास्त्र में निहित गूढ़ अर्थ को समाज के समक्ष सही-सही प्रस्तुत करना भारतीय विद्वानों का कर्तव्य है।

सुरेश सोनी रविवार को करौंदी स्थित इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, क्षेत्रीय केन्द्र वाराणसी के सभागार में मौजूद लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। आईजीएनसीए क्षेत्रीय केन्द्र,संस्कृत भारती, काशी प्रान्त के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुरेश सोनी ने तंत्र और मंत्र के महत्व को बताया।

कार्यक्रम में स्वामी प्रत्यगात्मानन्द सरस्वती प्रणीत ‘जपसूत्रम्’ ग्रन्थ का अतिथियों के साथ विमोचन कर ग्रंथ की सराहना की। उन्होंने कहा कि तन्त्र एक प्रक्रिया है जबकि मन्त्र एक साधन है। अतः इसके महत्त्व को इस ग्रन्थ के अनुशीलन से समझा जा सकता है।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पूर्व वेद विभागाध्यक्ष, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रो.हृदय रंजन शर्मा ने कहा कि भारतीय अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान पर प्रामाणिकता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। इस ग्रन्थ में ऐसे अनेक तत्त्व सम्मिलित हैं, जिससे युवाओं को अपने जीवन-दर्शन को समझने में सहजता होगी।

विशिष्ट अतिथि डॉ. ऊर्मिला शर्मा ने भी विचार रखा। इसके पहले संस्कृत भारती के छात्रों ने वैदिक मंगलाचरण प्रस्तुत किया। काशी प्रान्त के कोषाध्यक्ष अनिल नारायण किंजवडेकर ने अतिथियों का परिचय और प्रो.गोपबन्धु मिश्र ने जपसूत्र का विषय प्रवर्तन किया।

आईजीएनसीए के क्षेत्रीय निदेशक डॉ.अभिजित दीक्षित ने कहा कि वाक् मन और प्राण के मूल का समन्वयन ही जप का मूल है। कार्यक्रम का संचालन डॉ रजनीकान्त त्रिपाठी ने किया।

कार्यक्रम में प्रो.ऋत्विक सान्याल, प्रो. भगवतशरण शुक्ल, प्रो.कृष्णकांत शर्मा, प्रो.राकेश पाण्डेय, प्रो.फूलचंद जैन, प्रो.प्रद्युम्न शाह सिंह, प्रो.कमला पाण्डेय, डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय, डॉ स्वर वन्दना शर्मा, डॉ. प्रीति वर्मा, डॉ. दामिनी आर्या, डॉ. प्रियंका सिंह, डॉ. ओमप्रकाश सिंह आदि की उपस्थिति रही।

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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