धर्मशाला, 26 सितंबर (Udaipur Kiran) । वानिकी पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय स्थिरता में वर्तमान रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकी और भू -स्थानिक प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के बारे में कार्यशाला में ऑनलाइन व्याख्यान के साथ शुरुआत हुई। डॉ अनिल कुमार वरिष्ठ वैज्ञानिक/इंजीनियर एसजी और फोटोग्राममेट्री और रिमोट सेंसिंग डिपार्टमेंट ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग इसरो, देहरादून ने विस्तार से उक्त विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कृषि क्षेत्र में वर्तमान भू -स्थानिक प्रौद्योगिकी परिदृश्य के बारे में बात की। उन्होंने कृषि क्षेत्रों के बारे में कई अध्ययन उदहारण के माध्यम से दिखाए। व्याख्यान के अंत में उन्होंने रिमोट सेंसिंग इमेज वर्गीकरण और मैपिंग के लिए उनके द्वारा लिखी गई दो पुस्तकों के बारे में बताया।
डॉ हितेंद्र पडलिया, आईआईआरएस देहरादून ने वानिकी, पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय स्थिरता में भू -स्थानिक प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों पर अपना व्याख्यान शुरू किया। उन्होंने मुख्य रूप से वन संरक्षण की तैयारी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भू -स्थानिक प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिकाओं पर ध्यान केंद्रित किया। छात्रों ने मानचित्र के विभिन्न बिंदुओं का अध्ययन और जियोरेफ्रेंसिंग के साथ जियोकोडिंग के बारे में सीखा।
वहीं तीसरे दिन के छात्रों ने रिमोट सेंसिंग की वर्तमान तकनीकों के बारे में ज्ञान प्राप्त अभ्यास किया। कार्यशाला के दौरान आज हिमालय में क्रायोस्फेयर से जुड़े खतरों को चिह्नित करने के लिए भू-सूचना विज्ञान पर व्याख्यान से शुरू हुई। डॉ. इरफान राशिद कार्यशाला में ऑनलाइन रूप से जुड़े ,वह कश्मीर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में पृथ्वी विज्ञान पढ़ाते हैं। पर्यावरण विज्ञान में उनकी पीएचडी कश्मीर हिमालयी पौधों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर केंद्रित थी। उन्होंने भूविज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी पर चर्चा की, जो पृथ्वी के संसाधनों के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करने के लिए जीपीएस/जीएनएसएस, जीआईएस, एरियल फोटोग्राफी और उपग्रह रिमोट सेंसिंग का उपयोग करते हैं।
(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया