-पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 108वीं जयंती पर ‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ स्मृति व्याख्यानमाला में बोले केंद्रीय मंत्री
जयपुर, 25 सितंबर (Udaipur Kiran) । केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार देशभक्तों के लिए जीवन मंत्र समान हैं। यह हम सबका संकल्प होना चाहिए कि दीनदयालजी ने भारत की उन्नति के लिए भविष्य का जो अंत्योदयी और सर्वोन्मुखी राह दिखाई, उसे हम नए भारत के नवनिर्माण का पाथेय बनाएं।
बुधवार को धानक्या स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्मारक पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 108वीं जयंती पर ‘भारतीय ज्ञान परम्परा एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय’ स्मृति व्याख्यानमाला में बतौर मुख्य अतिथि शेखावत ने कहा कि दीनदयाल जी का अंत्योदय दर्शन भारतीय नीति और परंपरा की उस शपथ की तरह है, जिसमें भारत के विकास और समृद्धि का कोई चित्र, कोई संकल्प तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तब समाज के अंतिम व्यक्ति के जीवन को वह बदलाव, वह समृद्धि, विकास का वह दावा स्पर्श न करे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पंडित जी का एकात्म मानववाद आधुनिक भारत की निर्मित से जुड़ा एक ऐसा वैचारिक विवेक है, जो एक तरफ तो भारतीय ज्ञान पंरपरा से जुड़ा है, वहीं इसमें भविष्य की चिंताएं भी हैं। शेखावत ने कहा कि दीनदयाल जी की विचार प्रक्रिया को देखें तो हमें कुछ गूढ़ औऱ सूत्र बातें समझ में आती हैं। भारत की आजादी के एक-डेढ़ दशक के अनुभव के बाद दीनदयाल जी के मन को यह बात खूब मथने लगी थी कि इस स्वतंत्रता में स्व कहां है। वे व्यवस्था से लेकर समाज के बीच लगातार पर के भाव को हावी देखते थे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि चिंतन, विचार और व्यवस्था के तीन धरातल पर विकसित औपनिवेशिक अवधारणाओं का प्रभाव उन्हें चिंतित करता था। उन्हें लगता था कि अगर ऐसा ही रहा तो देश की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।
शेखावत ने कहा कि पंडित जी ने कहा कि हमारी दृष्टि समग्र, समन्वित और एकात्म है। हम सृष्टि को अखंड मानते हैं। हमारे यहां उपनिषद में कहा गया है- ईशावास्यमिदं सर्वं यानी जो कुछ भी है वह ईश्वर का है।
गोस्वामी तुलसीदास ने यही बात लोकसहज भाव के साथ कही- सियाराम मय सब जग जानी। बाद में आचार्य बिनोवा भावे जी ने इसे और सरल करके समझाया और कहा कि सबै भूमि गोपाल की।
शेखावत ने कहा कि दीनदयालजी कहते हैं कि सृष्टि तो एक-दूसरे से जुड़ी है। यहां विभाजन नहीं, अखंड परस्परता है। इसलिए भारत को पश्चिम की विश्व को देखने की खंडित दृष्टि को छोड़कर अपने बोध-संस्कार से जुड़ना होगा। मानस में गोस्वामी जी ने कहा है- कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। पर अब इसके उलट लोग मानने लगे हैं। प्रधानता आज अर्थ की है। अर्थ के संबंध में पंडित जी के विचार मौजूदा संदर्भ में काफी प्रासंगिक हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पंडित ने कहा था कि हमारी अर्थव्यवस्था में सर्वे भवन्तु सुखिन: की गारंटी होनी चाहिए। इसी को हमारे प्रधानमंत्री जी ने सरल करके सबका साथ, सबका विकास कहा है। दीनदयाल जी कहते थे कि छह बातों की पूर्ति की गारंटी अर्थव्यवस्था को देनी चाहिए- रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा। देश के प्रत्येक व्यक्ति को ये 6 चीजें मिलनी चाहिए। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि विचार के इसी सूत्र के आधार पर मोदी जी के नेतृत्व में हमारी सरकार समस्त जनों के लिए इन छह गारंटियों की बात कह रही है।
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(Udaipur Kiran)