-हाईकोर्ट ने इस आधार पर तलाक का आदेश बरकरार रखा
प्रयागराज, 25 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में माना कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठा आपराधिक मुकदमा चलाने से पति के मन में अपने परिवार और खुद की सुरक्षा के बारे में उचित आशंका पैदा हो सकती है, अगर वह वैवाहिक सम्बंध में बना रहता है। कोर्ट ने यह माना कि इस तरह का झूठा आपराधिक मुकदमा हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के तहत क्रूरता का गठन करने के लिए पर्याप्त है।
पक्षों ने 2002 में शादी की और उनके बेटे का जन्म हुआ। प्रतिवादी पति ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने 2006 में उसे छोड़ दिया था। बाद में उसने तलाक की कार्यवाही शुरू की। वर्ष 2011 में उन्होंने अपने वाद में संशोधन करते हुए तलाक के आधार के रूप में क्रूरता को शामिल किया, क्योंकि पत्नी द्वारा प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज की मांग के लिए झूठे आपराधिक मामले दर्ज कराए गए। ऐसे झूठे आरोपों के आधार पर उसके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार किया गया और बाद में उन्हें जमानत मिली।
न्यायालय ने पाया कि पत्नी ने विवाह के 6 वर्ष बाद और पति द्वारा तलाक की याचिका दायर करने के बाद दहेज की मांग के सम्बंध में प्राथमिकी दर्ज कराई। माता-पिता और पति को दोषमुक्त कर दिया गया। क्योंकि अपीलकर्ता अपने आरोपों का समर्थन साक्ष्य के साथ नहीं कर सकी और अपने बयान से पलट गई। इस कारण हाईकोर्ट ने माना कि क्रूरता सिद्ध हुई।
पत्नी के वकील ने अपर प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, कानपुर नगर द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को चुनौती देते हुए दलील दी कि अपीलकर्ता द्वारा अपने वैवाहिक जीवन में उसके साथ हुए बुरे व्यवहार के कारण आपराधिक मामले दर्ज किए गए। हालांकि न्यायालय ने पाया कि ऐसे आरोप सिद्ध नहीं हुए।
यद्यपि अपीलकर्ता ने दावा किया कि पक्षों के बीच समझौता हो गया, लेकिन न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज रिकॉर्ड में नहीं लाया गया। हाईकोर्ट ने कहा एक बार माता-पिता की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ आरोप झूठे पाए जाने के बाद क्रूरता का सख्त सबूत नहीं मांगा जा सकता। यह माना गया कि यदि दहेज की मांग साबित हो जाती तो यह अलग मामला होता। चूंकि आरोप झूठे थे और इससे प्रतिवादी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा प्रभावित हुई। इसलिए न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी पति के साथ क्रूर व्यवहार किया गया और भविष्य में ऐसा दोबारा होने के डर से वह अपीलकर्ता के साथ सहवास नहीं करना चाहता।
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनाडी रमेश की पीठ ने अपीलार्थी तृप्ति सिंह बनाम अजात शत्रु केस पर आदेश पारित कर कहा कि अपीलकर्ता द्वारा किए गए उस कृत्य के कारण प्रतिवादी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है। ऐसा होने के बाद प्रतिवादी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इससे उबर पाएगा और अपने वैवाहिक सम्बंधों को फिर से शुरू कर पाएगा।
यह देखते हुए कि दोनों पक्ष अच्छी तरह से शिक्षित है, न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी पति को अपीलकर्ता-पत्नी द्वारा झूठे आपराधिक मुकदमे के कारण प्रतिष्ठा का नुकसान हुआ है। इस प्रकार, भविष्य में भी ऐसा ही जोखिम रहेगा। इस आधार पर हाईकोर्ट ने फेमिली कोर्ट के तलाक का आदेश बरकरार रखा।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे