नैनीताल, 24 सितंबर (Udaipur Kiran) । हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से बिना न्याय विभाग की अनुमति लिए शासनादेश के विरुद्ध जाकर हाईकोर्ट में कुछ विशेष मामलों में सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से स्पेशल काउंसिल बुलाने व उन्हें प्रति सुनवाई के लिए 10 लाख दिए जाने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार को इस मामले में दस्तावेजों के साथ चीफ सेकेट्री का शपथपत्र दो सप्ताह के भीतर पेश करने को कहा है।
सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता की ओर से कहा गया कि यह जनहित याचिका निरस्त करने योग्य है क्योंकि इसमें वर्तमान के सीएम व मुख्य स्थाई अधिवक्ता को बगैर वजह पक्षकार बनाया गया हैं। जिनका इससे कोई लेना देना नही है इसलिए जनहित याचिका से उनके नाम हटाये जाए और जनहित याचिका को निरस्त किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी एवं न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
जिसका विरोध करते हुए याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विपक्षियों को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया कि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के लिए न तो राज्य के चीफ सेकेट्री से और न ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली। एक केस में स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने बाद लाखों का भुगतान कर दिया। जबकि जिस दिन केस लगा हुआ था उस दिन के कोर्ट के आदेश में उनका नाम नही छपा था। जिसकी अनुमति शासनादेश नही देता। इसलिए इसकी जांच कराई जाए।
स्पेशल काउंसिल नियुक्ति करने के लिए सरकार को मुख्यमंत्री, चीफ सेकेट्री व न्याय विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक होती है। उनकी स्वीकृति के बाद ही स्पेशल काउंसिल नियुक्त की जा सकता है। लेकिन यहां सरकार ने यह प्रक्रिया नही अपनाई गई और लाखो का भुगतान कर दिया गया।
(Udaipur Kiran) / लता