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लैंगिक आधार पर शिक्षक पदोन्नति में भेदभाव, हाईकोर्ट ने सभी महिला शिक्षकों को पदोन्नति के लिए माना पात्र

हाईकोर्ट जयपुर

जयपुर, 24 सितंबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने द्वितीय श्रेणी शिक्षक पद पर पदोन्नति के मामले में राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठता सूची जारी करने में लैंगिक आधार पर भेदभाव करने पर नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि महिला शिक्षकों को सिर्फ इस आधार पर पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता कि प्रदेश में कन्या विद्यालयों की संख्या कम है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह वर्ष 2008-09 और वर्ष 2009-10 की द्वितीय श्रेणी शिक्षकों की रिक्तियों के विरुद्ध की गई पदोन्नति में न सिर्फ याचिकाकर्ताओं को शामिल करें, बल्कि वर्ष 1998 तक नियुक्ति अन्य महिला शिक्षकों को भी इसका लाभ दिया जाए। अदालत ने इसके लिए तीन माह का समय दिया है। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश मंजू बाला चौधरी व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि एक ओर राज्य सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढाओ का नारा दे रही है और दूसरी ओर लडकों के स्कूल अधिक होने के आधार पर उन्हें पदोन्नति से वंचित कर रही है। जबकि भारतीय संविधान के तहत किसी से लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

याचिका में अधिवक्ता एचआर कुमावत ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने वर्ष 2008-09 और वर्ष 2009-10 की द्वितीय श्रेणी शिक्षकों की रिक्तियों के विरुद्ध वरिष्ठता सूची बनाई। जिसमें वर्ष 1998 तक नियुक्त हुए तृतीय श्रेणी पुरुष शिक्षकों को शामिल किया गया। जबकि वर्ष 1986 तक नियुक्त हुई तृतीय श्रेणी महिला शिक्षकों को ही स्थान दिया गया। इसके चुनौती देते हुए कहा गया कि राज्य सरकार की यह कार्रवाई लैंगिक भेदभाव को बढावा देती है। वरिष्ठता सूची में पुरुष और महिला शिक्षकों के बीच विधि विरूद्ध तरीके से 12 वर्ष का अंतर रखा गया है। याचिकाकर्ता वर्ष 1986 के बाद लेकिन वर्ष 1996 से पहले नियुक्त हुई हैं। ऐसे में उन्हें भी वरिष्ठता सूची में शामिल किया जाना चाहिए। इसका विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता नमृता परिहार ने कहा कि पुरुष और महिला शिक्षकों की अलग-अलग कैटेगरी होने के कारण अलग-अलग वरिष्ठता सूची बनाई गई है। वहीं लडकों के स्कूलों की संख्या बालिका विद्यालयों से अधिक होने के कारण इस तरह की अलग-अलग वरिष्ठता सूची बनाई है। जिसमें किसी भी तरह से कानूनी प्रावधानों की अवहेलना नहीं हुई है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने माना कि राज्य सरकार ने इस तरह वरिष्ठता सूची तैयार करने में लैंगिक भेदभाव किया है।

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(Udaipur Kiran)

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