Uttar Pradesh

तिरुपति बालाजी के लड्डू में मिलावट से देश स्तब्ध : सतीश राय

सतीश राय

प्रयागराज, 24 सितम्बर (Udaipur Kiran) । तिरुपति बालाजी के प्रसाद (लड्डू) में चर्बी के मिलावट की खबरों से पूरा देश स्तब्ध है। देश में कई प्रकार के खाद्य पदार्थों की कमी होती है तो गायब हो जाते हैं। लेकिन यह कभी नहीं सुना गया कि दूध घी भी बाजार से गायब है। जितना भी दूध, घी, पनीर, खोया की जरूरत है बाजार में उपलब्ध रहता है। यह बातें मंगलवार को एसकेआर योग एवं रेकी शोध प्रशिक्षण और प्राकृतिक संस्थान प्रयागराज रेकी सेंटर पर जाने माने स्पर्श चिकित्सक सतीश राय ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कही।

–मिलावटी खाने से सेहत पर बुरा असर

उन्होंने कहा कि हमारे देश में जितना घी चाहिए उतना दूध पैदा नहीं होता। ऐसे में बाजार में ज्यादातर मिलने वाले देसी घी मिलावटी हो सकते हैं। शरीर में ज्यादातर बीमारियां नकली खाद्य पदार्थ के खाने से होता है। मिलावट से लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में हर साल लगभग 23000 करोड़ लीटर दूध होता है, जबकि देसी घी बनाने के लिए सिर्फ 10 प्रतिशत 2300 करोड़ लीटर दूध ही उपलब्ध होता है। ऐसे में लगभग 76 करोड़ किलो घी बन सकता है। हमारे देश की आबादी 140 करोड़ है। जबकि प्रति व्यक्ति औसतन कम से कम 5 किलो देसी घी एक वर्ष में खाता है।

–देसी घी को ग्रन्थों में कहा गया है तरल सोना

सतीश राय ने बताया कि देसी घी की उत्पत्ति प्राचीन भारत में 2000 ईसा पूर्व हुई थी। आयुर्वेद से लेकर कई प्राचीन ग्रंथो में देसी घी को तरल सोना माना गया है। यह शरीर में विटामिन डी से लेकर कई पोषक तत्वों को पूरा करते हुए हड्डियों को मजबूत बनाता है, शरीर को स्वस्थ रखता है। यह शरीर के लिए खरा सोना है।

–मिलावट में उत्तर प्रदेश पहले नम्बर पर

एक रिपोर्ट के अनुसार मिलावट में पहला नंबर उत्तर प्रदेश का है। जब प्रसिद्ध मंदिर तिरुपति बालाजी के प्रसाद में मिलावट हो सकती है तो यहां ज्यादातर मंदिरों व आसपास में बिकने वाले शुद्ध देसी घी के मिठाइयों में भी मिलावटी घी का इस्तेमाल हो रहा हो ? बड़े-बड़े मिठाइयों की दुकानों में भी नकली देसी घी और नकली दुग्ध पदार्थ का इस्तेमाल हो रहा हो ? इन सब जगह में बड़े पैमाने पर जांच करने की जरूरत है।

–मिलावट का सिर्फ दो से पांच प्रतिशत का होता है पर्दाफाश

सतीश राय ने कहा कि हमारे देश में जितना मिलावटी सामान बनता है भ्रष्टाचार के कारण सरकारी विभागों फूड-इंस्पेक्टर एवं पुलिस द्वारा सिर्फ़ दो प्रतिशत से लेकर 5 प्रतिशत ही पर्दाफाश हो पाता है। जब कि 95 प्रतिशत मिलावटी पदार्थ आसानी से घरों में इस्तेमाल हो रहा है।

इसी साल जयपुर में पुलिस ने वी-मार्ट रिटेलर स्टोर्स से 450 लीटर मिलावटी घी बरामद किया था। एफ एस एस ए आई और केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय ने अपनी अलग-अलग रिपोर्ट में माना है कि शुद्ध देसी घी में जानवरों की चर्बी एवं एनिमल फैट नहीं होता। जबकि मिलावटी घी इसी चर्बी और फैट से बनता है।

–न्याय में देरी से मिलावटखोरों के हौसले बुलंद

उन्होंने बताया कि वर्ष 1983 दिल्ली में वनस्पति घी पर छापा मार कर पकड़ा। जिसमें फैट और जानवरों की चर्बी थी। लोगों ने वनस्पति घी खाना छोड़ दिया था। उस समय मुकदमा दर्ज हुआ था। जिसका फैसला 31 वर्ष बाद 2014 में आया और जांच में जानवरों की चर्बी मिला होना साबित हो गया। न्याय तुरंत होना चाहिए न्याय मिलने में देरी अपराध को बढ़ाता है। ऐसे में पूरे संविधान में समीक्षा की जरूरत है। आज यदि तिरुपति बालाजी के मंदिर में मिलने वाले प्रसाद में चर्बी की जांच व मुकदमा कायम होता है उसमें चर्बी थी या नहीं, यह सत्यता जानने के लिए लगभग 30 वर्ष का समय लग जाएगा।

-’जांच के लिए मोहल्लों में खुलना चाहिए टेस्ट लैब

यदि आम उपभोक्ता उपयोग में लाये जा रहे तेल, घी, दूध की अपने खर्चे पर जांच कराना भी चाहे वह शुद्ध है या नहीं तो वह नहीं करा सकता। जिसका लाभ मिलावट खोरों को मिलता है। ब्लड टेस्ट की तरह जगह-जगह मोहल्ले में ऐसे लैब होने चाहिए जिसमें लोग अपने खर्चे पर जांच करा सकें तभी मिलावट खोरी की समस्या से बचा जा सकता है।

—————

(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र

Most Popular

To Top