रांची, 23 सितंबर (Udaipur Kiran) । झारखंड हाई कोर्ट ने विधानसभा नियुक्ति गड़बड़ी मामले में दायर जनहित याचिका पर साेमवार काे फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इस केस को सीबीआई को देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह सीबीआई को देने को लेकर उचित केस है।
पूर्व में कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनवाई पूरी होने के बाद मामलों में अदालत ने 20 जून को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। राज्य सरकार द्वारा मामले में शपथ पत्र के माध्यम से दायर किए गए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट की कई बिंदुओं पर याचिकाकर्ता ने कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया था। महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कोर्ट को बताया था कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट कानूनी रूप से रिपोर्ट नहीं मानी जाएगी। रिपोर्ट को सरकार के समक्ष पेश किया जाना चाहिए था लेकिन इसे सीधे राज्यपाल को दे दिया गया।
राज्यपाल ने जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट सरकार को नहीं दी, जिससे विधानसभा के सदन के पटल छह माह के भीतर एक्शन रिपोर्ट के बाद इसे नहीं रखा जा सका। जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट मैं कई त्रुटियां भी थी एवं उस कमीशन की कई अनुशंसा भी अस्पष्ट थी। इन त्रुटियों को देखने के लिए जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की एक कमीशन बनानी पड़ी।
जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने स्वीकार कर लिया है और उसे विधानसभा के सदन पटेल पर रखा जा चुका है। जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट ही फाइनल रिपोर्ट है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने कोर्ट को बताया था कि झारखंड विधानसभा के वर्तमान स्पीकर विधानसभा कमेटी के सदस्य थे। इस कमेटी ने विधानसभा नियुक्ति गड़बड़ी मामले की जांच का रिपोर्ट दिया था की कार्रवाई होनी चाहिए थी। उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया था कि जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्हें केवल जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट ही दी गई थी। रिपोर्ट के साथ कोई दस्तावेज (एनेक्सचर) नहीं दी गई थी।
पूर्व में ही सरकार की ओर से एसजे मुखोपाध्याय आयोग की रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट में प्रस्तुत की जा चुकी थी। झारखंड विधानसभा में नियुक्ति गड़बड़ी मामले में शिव शंकर शर्मा ने जनहित याचिका दाखिल की है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार और झारखंड विधानसभा से पूछा था कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट में क्या त्रुटियां थीं, जिसके कारण दूसरी आयोग बनानी पड़ी थी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से पूर्व की सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि मामले की जांच को लेकर पहले जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की अध्यक्षता वाली वन मैन कमिशन बनी थी, जिसने मामले की जांच कर राज्यपाल को वर्ष 2018 में रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को एक्शन लेने का निर्देश दिया था लेकिन वर्ष 2021 के बाद से अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। राज्यपाल के दिशा निर्देश के बावजूद भी विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस मामले को लंबा खींचा जा रहा है। मामले में देरी होने से गलत तरीके से चयनित होने वाले अधिकारी सेवानिवृत हो जाएंगे।
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(Udaipur Kiran) / शारदा वन्दना