जम्मू, 22 सितंबर (Udaipur Kiran) । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज मिश्रीवाला में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि संसार मे करोड़ों नाम हैं, पर उनसे आत्मा की मुक्ति नहीं हो सकती है। संतों की सत्य नाम निराला है। वो तो एक अद्भुत चेतना है। वो लिखा नहीं जा सकता है, वो पढ़ा नहीं जा सकता है। वो कहने सुनने से परे है। उसी में आनन्द है।
शास्त्रों में भी लिखा है कि आत्मा आनन्दमयी है। आत्मा से बढ़कर कहीं आनन्द नहीं है। कुछ कह रहे हैं कि आत्मा ही सबकुछ है। उनसे मैं सवाल करता हूँ कि अगर आत्मा ही सर्वोपरि है तो बँधी क्यों है। दो चीज दुनिया के सब लोग स्वीकार करते हैं। चाहे वो ईश्वर को नहीं मानते हैं तो भी मानते हैं कि आत्मा आनन्दमयी है। आत्मा को मानते हैं। महात्मा बुद्ध के अष्टांग योग में कहीं भी परमात्मा की जिक्र नहीं है। केवल आत्मा का जिक्र है। मैंने एक ब्रह्मज्ञानी से पूछा। वो भी कह रहा था कि आत्मा ही सब कुछ है। यही बात सन्यासी भी कहते हैं-अहं ब्रह्मस्मि। मैंने उससे पूछा कि भाई अगर आत्मा ही सबकुछ है तो बंधी कैसे। बोला कि कर्मों के कारण। फिर तो कर्म ही बड़ा हो गया न। फिर आत्मा सबकुछ कैसे हो गयी। यहाँ भी एक शब्द है कि सभी कर्मों में फंसे हुए हैं। ये कर्म शुभ और अशुभ दोनों हो जाते हैं।
यहाँ एक बात आती है कि पाप और पुण्य दोनों कर्म बंधनकारक हैं। हमारी आत्मा का कर्म से कोई संबंध नहीं है। हम सब जो भी कर्म करते हैं, वो कर्म 14 इंद्रियों द्वारा करते हैं। ये सब मन के अनुसार काम करती हैं। इस तरह हरेक आदमी मन के अधीन है। मन ही काल है, जो जीव को नचाकर बेहाल कर रहा है। साहिब कह रहे हैं कि जीव के संग मन रूपी काल रह रहा है। पूरा मन का जाल है। हम कह भी रहे हैं कि मन और माया में बंधे हैं। पर छूटने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। एकाग्रता क्या है। आत्मा तो ध्यान है। इसलिए कबीर साहिब ने सुरति योग स्थापित किया। यानी आत्मा शरीर में शुद्ध चेतना है।
वो शुद्ध चेतना ही शरीर का संचालन करती है। वो आज्ञाचक्र में रहकर प्राणों का संचालन शरीर में करती है। पर कौतुक है कि आत्मा ने अपने को शरीर मान लिया। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी यही कहा कि जड़ शरीर और चेतन आत्मा की गठान पड़ गयी है। चाहे झूठी है, फिर भी छूट नहीं रही है। साहिब कह रहे हैं कि पाप और पुण्य दोनों बेढ़ियाँ हैं। दोनों तरह के कर्म आत्मा के लिए बंधनकारक हैं। कर्म की फाँस में सारा संसार बंध गया है। शरीर को धारण करने के बाद आत्मा बेहद कष्ट में है। सब यह दंड भुगत रहे हैं।
बहुत सारे बंधनों से आत्मा को बाँधा गया है। यह अपनी ताकत से नहीं छूट सकता है। गोस्वामी जी कह रहे हैं कि वेद-शास्त्र बहुत उपाय बता रहे हैं लेकिन अधिक अधिक उलझ रहा है। बिना सद्गुरु के नाम के यह गांठ कोई नहीं छुड़ा सकता है। यह क्या है नाम। सार नाम स्वंय सत्पुरुष है। यानी वो स्वयं छुड़ा सकता है।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा