Madhya Pradesh

जबलपुर: परीक्षा को लेकर मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर के निर्णय से सैकड़ों आयुर्वेद छात्रों का भविष्य संकट में

जबलपुर, 21 सितंबर (Udaipur Kiran) । मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर के आदेशानुसार रतलाम समेत प्रदेशभर के 13 से ज्यादा निजी आयुर्वेद मेडिकल कॉलेजों के 150 से 200 छात्रों का भविष्य संकट में है! क्योंकि अब उन्हें हमेशा की तरह अपने स्वयं के कॉलेजों के स्थान पर पास के शासकीय आयुर्वेद कॉलेजों प्रायोगिक परीक्षा देने जाना होगा। आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर ने निर्णय किया है कि विश्वविद्यालय से संबद्ध निजी आयुर्वेद कॉलेजों के बीएएमएस तृतीय वर्ष अगस्त-2024 की प्रायोगिक परीक्षायें शासकीय आयुर्वेद कॉलेजों में संपन्न होंगी।

आयुष मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता व निजी आयुर्वेद महाविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ के कार्य.अध्यक्ष डॉ राकेश पाण्डेय ने चर्चा में बताया कि रतलाम , बैतूल में संचालित आयुर्वेद कॉलेज के छात्रों को और भी ज्यादा परेशानी होगी क्योंकि रतलाम के छात्रों को शासकीय धन्वंतरि आयुर्वेद कॉलेज में जाना होगा परीक्षा देने जो रतलाम से 103 किमी है। इसी तरह बैतूल के छात्रों को भोपाल के पं खुशीलाल शर्मा शा. आयुर्वेद कॉलेज जाना होगा जो बैतूल से 159 किमी है। इस तरह और भी कॉलेज हैं। वैसे भी बरसात का टाइम है और दूरस्थ कॉलेजों में रोजाना परीक्षा देने जाना, संशाधनों का अभाव व रुकने- भोजन की परेशानी के साथ आर्थिक भार भी पड़ेगा छात्रों को किसी कारण से छात्र अनुपस्थित हो गया तो पूरा भविष्य खराब हो सकता है।

ज्ञात रहे कि मेडिकल यूनिवर्सिटी से 13 से ज्यादा आयुर्वेद कॉलेज जुड़े हैं परंतु सप्लीमेंट्री परीक्षा में किसी कारण से 20 फीसदी छात्र भी अनुपस्थित रहे तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? मेडिकल यूनिवर्सिटी के अंतर्गत जबलपुर, रतलाम, इंदौर, ग्वालियर,जबलपुर, उज्जैन, बुरहानपुर, रीवा, बैतूल आदि के 13 से ज्यादा कॉलेज सम्मिलित हैं। डॉ पाण्डेय ने विश्वविद्यालय के कुलपति व कुलसचिव से आग्रह किया है कि अपने आदेश पर पुन: विचार करके पहले की भांति अपने-अपने कॉलेजों में ही प्रायोगिक परीक्षा संपन्न कराने का आदेश शीघ्र जारी करें वर्ना छात्रों की दुर्गति तो होगी ही साथ ही विषयवार आंतरिक व बाह्य परीक्षकों को भी संकट का सामना करना पड़ सकता है ! वैसे भी भारतीय चिकित्सा पद्दति राष्टीय आयोग नईदिल्ली द्वारा शासकीय हो या निजी कॉलेज – मान्यता, पाठ्यक्रम तो बराबर ही रहता है! मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय को भी गंभीरता के साथ छात्रहित में निर्णय करना चाहिये।

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(Udaipur Kiran) / विलोक पाठक

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