लखनऊ, 20 सितंबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की ओर से शुक्रवार को स्वस्थ उत्तर प्रदेश विकसित उत्तर प्रदेश विषय पर व्याख्यान गोष्ठी एवं मण्डल स्तरीय संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में अतिथि के रूप में आमंत्रित पूर्व निदेशक डॉ. आनन्द ओझा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग, द्वारा हिन्दी साहित्य में वर्णित स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों में अन्वेषण विश्लेषण हेतु कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। हिन्दी ग्रन्थों जैसे रामायण, रामचरितमानस, महाभारत, वैदिक ग्रन्थों में स्वास्थ्य सम्बन्धी तथ्यों के संकलन की एवं वैज्ञानिक उपयोगिता पर विचार एवं शोध की आवश्यकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व सलाहकार डॉ. अनिल मिश्रा ने बताया कि विकास और स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं। विकास की राह स्वास्थ्य के आंगन से ही निकलती है। स्वास्थ्य का आयाम शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से लेकर सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य तक है। मण्डल स्तरीय संस्कृत प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में 06 जिलों के 55 प्रतिभागी बच्चों द्वारा प्रतिभाग किया गया। प्रतिभागी बच्चों में विजयी 15 बच्चों को प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। साथ ही स्वच्छता पर आधारित एक इरादा लघु नाटक की भी प्रस्तुति की गयी।
पूर्व निदेशक, आयुर्वेद विभाग डॉ. केवल कृष्ण ठकराल ने बताया कि ईश्वर ने मनुष्य को दो चीजें दी है यथा शरीर और मन, इन दोनों के स्वास्थ रहने पर ही कोई व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। डॉ० रश्मि शील ने बताया कि अथर्ववेद में कहा गया है जीवेत शरदः शतम् शतम् यानि की हम सौ वर्ष तक जीवित रहें और इसके लिए जरूरी है निरोगी काया। हमारे यहां इसे ही जीवन कौशल कहा गया है। वर्तमान में हम स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में निरन्तर कार्य कर रहे हैं।
संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव ने कहा कि स्वास्थ्य, जीवन की महत्वपूर्ण आधारशिला होती है। संस्कृत की एक उक्ति है-आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनं अर्थात, स्वास्थ्य ही परम धन है और अच्छे स्वास्थ्य से हर कार्य पूरा किया जा सकता है।
(Udaipur Kiran) / बृजनंदन यादव