Madhya Pradesh

पन्नाः भगवान जुगल किशोर एवं श्री राम चंद्र ने दिए वामन अवतार के रूप में दर्शन, लगी भीड़

एवं भगवान श्रीराम चंद्र जी
भगवान जुगल किशोर

पन्‍ना, 15 सितंबर (Udaipur Kiran) । पवित्र नगरी पन्ना में परम्परागत पर्वो के अलावा अन्य सासामयिक धार्मिक आयोजन होते हैं। इसी कडी़ में रविवार को भगवान वामन अवतार के रूप में श्री जुगल किशोर जी एवं भगवान श्रीराम चंद्र जी के श्रद्धालुओं नेे दर्शन दियेे। इस दिन भगवान श्री जुगल किशोर जी एवं भगवान श्री राम चंद्र जी ने पारम्परिक वेषभूषा में सजाया गया था जिनके दर्शन के लिए पूरे दिन मंदिर के समय भीड़ देखी गई ऐसी मान्यता है कि भादों माह कि शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे परिवर्तिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है इस दिन भगवान की विशेष पूजा अर्चना एवं व्रत करते है इस एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु करवट बदलते है तथा द्वादशी के दिन वामन अवतार के रूप मे भक्तों को दर्शन देते हैं।

यह है कथा प्रचलित:- ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में बलि का नाम का एक दानव था। वह अत्यन्त भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्राणों की सेवा करने वाला था। वह सदैव यज्ञ तप आदि किया करता था वह अपनी भक्ति के प्रभाव से स्वर्ग में इंद्र के स्थान पर राज्य करने लगा। इंद्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन न कर सके और भगवान के पास जाकर प्रार्थना करने लगे अंत में भगवान ने वामन रूप धारण किया और अत्यंत तेजस्वी ब्राह्राण बालक के रूप में राजा बलि को जीता । इस पर राजा युधिष्ठर बोले कि हे जनार्दन अपने वामन रूप धारण करके उस बलि को किस प्रकार जीता? तो साविस्तार समझाइये। श्री कृष्ण भगवाना बोले कि हे राजन मैने वामन रूप धारण करके राजा बलि से याचना की कि हे राजन् कि तुम मुझे तीन पैर भूमि दे दो। इससे तुम्हारे लिए तीनलोक दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने इस छोटी सी याचना केा स्वीकार कर लिया और भूमि देने को तैयार हो गया। तब मैंने अपने आकार को बढा़या और भूलोक में पैर भुवनलोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महलोेक में पेट, जनलोक में ह्रदय , तपलोक में कंण्ठ , और सप्त लोक में मुख रखकर अपने सिर केा उंचा उठा लिया। उस समय मैंने राजा बलि को पकड़ा और पूछा कि हे राजन् अब मैं तीसरा पैर कहां रखू। इतना सुनकर राजा बलि ने अपना सिर नीचा कर लिया उस सिर पर मैंने अपना तीसरा पैर रख लिया और वह भक्त दानव पाताललोक मैं चला गया । जब मैंने उसे अत्यन्त विनीत पाया तो मैंने उससे कहा कि हे बलि मैं सदैव तुम्हारे पास रहूॅगा । भादों के शुक्लपक्ष की परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है। इस एकादशी को विष्णु भगवान सोते हुये करवट बदलते हैं। इस दिन त्रिलोकी के नाथ श्रीविष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इसमें चावल और दही सहित चॉंदी का दान किया जाता है।

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(Udaipur Kiran) / सुरेश पांडे

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