Uttar Pradesh

व्यक्तित्व निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजभाषा : डॉ आनंद कुमार सिंह

व्यक्तित्व निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजभाषा : डॉ आनंद कुमार सिंह

कानपुर,14 सितम्बर (Udaipur Kiran) । हिंदी हमारी मातृभाषा है और मनुष्य किसी अन्य भाषा की अपेक्षा अपनी मातृभाषा में तीव्र गति से सीखता है। यह व्यक्तित्व निर्माण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजभाषा है। यह बात हिंदी दिवस के अवसर पर शनिवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉक्टर आनंद सिंह ने कहा।

उन्होंने कहा कि देशभर में 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिंदी मात्र भाषा की महत्वता और उसकी नितांत आवश्यकता को याद दिलाता है। सन 1949 में 14 सितंबर के दिन ही हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा मिला था। जिसके बाद से अब तक हर वर्ष यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

डॉ सिंह ने बताया कि इस दिन को महत्व के साथ याद करना इसलिए जरूरी है। क्योंकि अंग्रेजों से आजाद होने के बाद यह देशवासियों की स्वाधीनता की भी एक निशानी है। उन्होंने कहा कि पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था। विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी कार्य ने गति पकड़ी है। विभिन्न प्रकाशन में अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी का भी काफी प्रयोग हो रहा है। साथ ही हिंदी में पत्राचार की संख्या में वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय की वेबसाइट एवं कृषि विज्ञान केंद्रों के पोर्टल पर भी हिंदी में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। प्रधानमंत्री ने भी नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दिए जाने की बात कही है। जिससे छात्रों को विषय वस्तु समझने में आसानी होगी। हिंदी हमारी मातृभाषा है और मनुष्य किसी अन्य भाषा की अपेक्षा अपनी मातृभाषा में तीव्र गति से सीखता है।

उन्होंने कहा कि विश्व में अनेक विकसित देशों में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है। जापान इसका प्रमुख उदाहरण है। जब अन्य देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा एवं कामकाज कर सकते हैं। हमें अपनी दैनिक कामकाज में हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

कुलपति डॉ सिंह ने कहा कि हिंदी भारत की विभिन्न औपचारिक भाषाओं में एक है। हिंदी दिवस के अवसर पर कुलपति ने विश्व विद्यालय परिवार के सभी अधिकारियों, शिक्षकों, वैज्ञानिकों एवं कर्मचारियों एवं छात्र छात्राओं को शुभकामनाएं दी।

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(Udaipur Kiran) / रामबहादुर पाल

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