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न्यायिक पृथक्करण के बाद एक वर्ष तक पति-पत्नी के बीच कोई सहवास नहीं तो तलाक का आदेश बरकरार : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज, 13 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 10 के तहत यदि वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना या न्यायिक पृथक्करण के आदेश के बाद एक वर्ष में पति-पत्नी के बीच कोई सहवास नहीं होता है, तो पृथक्करण के आदेश को बरकरार रखा जाएगा।

दोनों पक्षों ने 08 दिसम्बर 2001 को विवाह किया। प्रतिवादी-पति ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता पत्नी ने 2002 में उसे छोड़ दिया। चूंकि पत्नी ने दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक सम्बंध को पुनर्जीवित नहीं किया, इसलिए उसने अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करते हुए कार्यवाही शुरू की।

पत्नी ने प्रतिवाद दायर किया और न्यायिक पृथक्करण की डिक्री मांगी। इसके बाद, 2006 में प्रतिवादी-पति द्वारा शुरू किए गए मामले को खारिज कर दिया गया और अधिनियम की धारा 10 के तहत अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई न्यायिक पृथक्करण की डिक्री मंजूर कर ली गई।

इसके एक साल बाद पति ने दावा किया कि दोनों पक्ष एक साथ नहीं रहते थे, जबकि पत्नी ने दावा किया कि दोनों साथ रहते थे। पति की बात पर विश्वास करते हुए ट्रायल कोर्ट ने दोनों पक्षों को तलाक का आदेश दे दिया, जिसे अपीलकर्ता पत्नी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने माना था कि पति के इस कथन पर संदेह करने का कोई कारण नहीं था कि दोनों पक्ष एक साथ नहीं रहते थे और इस प्रकार न्यायिक पृथक्करण के निर्णय से एक वर्ष के भीतर उनका विवाह पुनर्जीवित नहीं हुआ था। यह माना गया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था कि 11 मई 2006 के बाद किसी भी समय विवाह पुनर्जीवित हुआ था। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 13 (1ए) की प्रयोज्यता के सम्बंध में न्यायालय ने माना कि यह पक्षकारों के सहवास पर निर्भर होगा, जो स्पष्ट रूप से नहीं हुआ है।

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की पीठ ने कहा, “यदि निर्धारित वैधानिक अवधि के भीतर कोई सहवास नहीं होता है, तो प्रभावित पक्ष के लिए यह विकल्प खुला होता है कि वह निर्धारित वैधानिक अवधि के भीतर कोई सहवास न होने के कारण विवाह विच्छेद के लिए आवेदन कर सके।“ न्यायालय ने पाया कि उस अवधि के दौरान, दोनों पक्षों के बीच कोई सहवास नहीं हुआ था और इस प्रकार न्यायिक पृथक्करण का निर्णय उचित था। तदनुसार, पत्नी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया गया। पत्नी का मामला जालौन, उरई का था।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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