जयपुर, 13 सितंबर (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने सीआरपीएफ कर्मचारी की सेवा समाप्ति से जुडे मामले में कहा है कि जांच अधिकारी वकील की भूमिका निभाता है तो इससे पूरी विभागीय जांच दूषित होती है। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता के सेवा समाप्ति से जुडे 16 मार्च, 2002 के आदेश को निरस्त कर मामले में पुन: छह माह में निर्णय लेने को कहा है। जस्टिस अनूप ढंड ने यह आदेश महेन्द्र सिंह की याचिका पर दिए। अदालत ने कहा कि मामले में जांच अधिकारी ने वकील के तौर पर काम किया और गवाहों से कई सवाल पूछे व उसी आधार पर जांच की गई। ऐसे में याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप साबित हुए और उसे सेवा से हटाया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट तय कर चुका है कि जांच अधिकारी निष्पक्ष रहेगा और वकील की भूमिका नहीं निभाएगा।
याचिका में कहा गया कि वह सीआरपीएफ में कार्यरत था। उसके खिलाफ जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच आरंभ की गई। इस दौरान जांच अधिकारी ने गवाहों से कई सवाल पूछकर अपनी जांच रिपोर्ट दी। जिसके चलते उसे 16 मार्च, 2002 को सेवा से हटा दिया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट पूर्व में तय कर चुका है कि विभागीय जांच अधिकारी को निष्पक्ष होना जरूरी है। इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाए। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 22 साल पुराने आदेश को रद्द करते हुए छह माह में नए सिरे से निर्णय करने को कहा है।
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(Udaipur Kiran)