झाबुआ, 12 सितंबर (Udaipur Kiran) । अहंकार साधना मार्ग में सबसे बड़ा अवरोध है, इसलिए अपने अहंकार का विसर्जन कर हमें प्रभु शरणागति ग्रहण करना होगी, तभी भक्ति पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है, मनुष्य योनि में हमारा जन्म लेना सार्थक हो सकेगा। उक्त कथन डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा ने गुरुवार को जिले के थान्दला में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अन्तर्गत आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत सप्ताह महोत्सव के प्रथम दिन स्थानीय श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर सभागार में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान व्यक्त किए।
श्रीमद्भागवत में उल्लेखित हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के प्रसंग में शर्मा ने कहा कि जय विजय ने अहंकार के वशीभूत होकर सनकादिक मुनियों की अवहेलना की थी , परिणामस्वरूप हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में दैत्य कुल में जन्म ग्रहण करना पड़ा। राजा परीक्षित को श्रृंगी ऋषि द्वारा शापित किया जाने के मूल में भी एक राजा और भगवान् के एक भक्त का अहंकार ही था, किंतु जब उन्होंने अपने अहंकार का परित्याग कर पश्चाताप किया, तो मोक्ष का द्वार उनके लिए खुल गया। इसलिए साधना मार्ग के पथिक को चाहिए कि वह अहंकार को अपने पास न आने दें। अपने अंदर समाहित अहंकार का त्याग कर प्रभु शरणागति को प्राप्त करना भक्ति की पहली सीढ़ी है, जिसके सहारे परमतत्व की प्राप्ति संभव हो सकती है।
शर्मा ने कहा कि प्रभु शरणागति होने का अभिप्राय उनका नित्य निरन्तर स्मरण है, ओर स्मरण की पहली सोपान है, कथा श्रवण, हरिनाम संकीर्तन एवं जप है, ओर सर्वोत्तम जप संकीर्तन है– हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। उक्त महामंत्र का संकीर्तन एवं जप इस कलियुग की एकमेव एवं सर्वश्रेष्ठ साधना है, इस साधन से जहां जीव प्रभु प्रेम पाने की दिशा में अग्रसर होने लगता है, वहीं हमारी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति का भी मार्ग प्रशस्त होने लगता है।
डॉ.शर्मा ने श्रीमद्भागवत महापुराण की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप का ज्ञान कराने वाला उत्तम साधन है। इसमें समस्त वेदों का सार समाहित है, ओर यह भव रोग की उत्तम औषधि है, इसलिए संसार में आसक्त जो लोग अज्ञान के घोर अन्धकार से पार जाना चाहते हैं उनके लिए आध्यात्मिक तत्वों को प्रकाशित कराने वाला यह अद्वितीय दीपक है। यह श्रीमद्भागवत गोपनीय और रहस्यमय महापुराण है, किन्तु जब हम मनोयोग पूर्वक इसका श्रवण करते हैं, तो रहस्य उजागर होने लगते हैं, प्रभु नाम में हमारी निष्ठा द्रढ़ होने लगती है, और भगवान् के चरणारविन्दों में प्रेम जागृत हो जाता है।
प्रथम दिवस की कथा में जहां देवी कुंती द्वारा की गई भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य स्तुति, अश्वत्थामा का मानमर्दन, सृष्टिक्रम वर्णन सहित ध्यान विधि ओर भगवान् के विराट स्वरूप का वर्णन कथा कही गई, वहीं भीष्म पितामह का महाप्रयाण, महाराज परीक्षित को श्रंगी ऋषि का शाप ओर भगवान् शुकदेवजी के आगमन की कथा का भी वर्णन किया गया।
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(Udaipur Kiran) / उमेश चंद्र शर्मा