— बाजार में बढ़ सकते हैं दाम, चिंतित हो रहा किसान
कानपुर, 12 सितम्बर (Udaipur Kiran) । समुद्री गतिविधियों से सितम्बर माह का मानसून इन दिनों जबरदस्त सक्रिय है और लगातार बारिश हो रही है। यह बारिश धान की फसल के लिए तो वरदान साबित हो रही है लेकिन दलहनी फसलों के लिए नुकसानदायक है। इससे किसान चिंतित है कि दलहनी फसलों का उत्पादन गिर जाएगा और अपेक्षा के अनुरुप लाभ नहीं मिल सकेगा। ऐसे में बाजार में दालों के दामों में (खासकर अरहर की दाल) बढ़ोत्तरी हो सकती है और आम आदमी की थाली मंहगी होने की संभावना है।
देश में खरीफ सीजन की प्रमुख फसलें बोई जा चुकी हैं जिसमें धान और अरहर की फसल प्रमुख है। अरहर की फसल को इस माह जहां कम पानी की जरुरत होती है तो वहीं धान की फसल को अधिक पानी चाहिये। यह दोनों फसल देश के बाजार की रीढ़ है और इसमें किसी का संतुलन बिगड़ा तो आम आदमी की परेशानी बढ़ना लाजिमी है। इधर देखा जा रहा है कि समुद्री तूफान यागी का असर उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत में जबरदस्त पड़ रहा है। इसके अलावा बंगाल की खाड़ी में बना निम्न दबाव का क्षेत्र भी उत्तर भारत में डिप्रेशन (अवदाब) के रुप में परिवर्तित हो रहा है। इन सब परिस्थितियों से इन दिनों मानसून सक्रिय है और लगातार बारिश हो रही है और मौसम विभाग का अनुमान है कि पूरे सितम्बर माह में औसत से अधिक बारिश की ओर वेधशालाएं इशारा कर रही है। ऐसे में धान की फसल के लिए यह बारिश जहां वरदान साबित हो रही है तो वहीं दलहनी फसलों के लिए ज्यादा पानी नुकसानदायक है।
चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम कृषि वैज्ञानिक डॉ. एस एन सुनील पाण्डेय ने गुरुवार को बताया कि ज्यादा बारिश से अरहर फसल की पैदावार कम हो सकती है। ज्यादा बारिश के कारण अरहर की जड़ों में ज्यादा पानी एकत्र होने की सूरत में पैदावार प्रभावित होना लाजिमी है। ज्यादा पानी फसल में इकट्ठा होने पर उकठा नामक रोग हो सकता है, जिससे अरहर की फसल की पैदावार कम हो सकती है। अरहर एक दीर्घकालिक फसल है। इसके किस्मों को पकने में 5 से 11 महीने लगते हैं। इसलिए अभी पूर्वानुमान लगाना बहुत जल्दबाजी होगी। लेकिन ज्यादा बुआई के वजह से उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष की फसल मजबूत हो सकती है।
फसल खराब होने से बढ़ सकते हैं दाम
दाल कारोबारी हीराशंकर चंदानी का कहना है कि मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि सितंबर में अधिक बारिश मौजूदा फसलों को नुकसान पहुंचा सकती है। कई राज्यों में तेज बारिश हो रही है। इससे अधिकांश फसलें बर्बाद हो चुकी है। जिससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है। अगर अरहर की फसल बर्बाद होती है तो दालों के दामों में इजाफा देखा जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ यदि अरहर की फसल अच्छी रहती है और बाजार में आयात बढ़ जाता है तो दालों के दाम में गिरावट भी आ सकती है। ऐसी स्थिति आम आदमी के लिए तो राहत देगी लेकिन किसानों को इससे परेशानी हो सकती है। व्यापारियों का अनुमान है कि इस वर्ष दालों की कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ेगी, क्योंकि वैश्विक स्तर पर तुअर, उड़द, और दाल की अच्छी पैदावार हो रही है।
चना के बाद अरहर देश की दूसरी सबसे बड़ी दाल
देश में लोगों की पहली पसंद दालों में अरहर की दाल रहती है तो वहीं बाजार में चना के बाद अरहर की दाल देश की दूसरी बड़ी दाल है। वार्षिक दाल उत्पादन में अरहर 13-14 प्रतिशत है। इस वर्ष अरहर की बुआई समाप्त हो चुकी है। इसे लगभग 4.57 मिलियन हेक्टेयर में उगाया गया है, जो पिछले पांच वर्षों की औसत क्षेत्रफल से अधिक है।
—————
(Udaipur Kiran) / अजय सिंह