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प्रयागराज में आर्य समाज के नाम वाली संस्थाओं की जांच का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट

-फर्जी दस्तावेजों पर विवाह कराने के दर्जनों मामले आ रहे हाईकोर्ट

-पुलिस कमिश्नर को स्वयं की निगरानी में जांच करने का निर्देश

-फर्जी विवाहों से मानव तस्करी, यौन उत्पीड़न को मिलता है बढ़ावाः हाईकोर्ट

प्रयागराज, 11 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज के विभिन्न मोहल्ले में चल रही आर्य समाज के नाम वाली संस्थाओं की जांच करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया है कि वह विवाह कराने वाली इन संस्थाओं की विस्तृत जांच करायें। जांच में पता लगाया जाए कि यह संस्थाएं किस नाम और पते के साथ किन क्षेत्रों में चल रही हैं। उनके अध्यक्ष सचिव और पुरोहित जो शादी कराते हैं, के बारे में विस्तृत जानकारी इकट्ठा की जाए। यदि उनका कोई आपराधिक इतिहास है तो उसकी भी जानकारी की जाए।

कोर्ट ने कहा कि यह भी पता लगाया जाए कि घर से भागे हुए लड़के-लड़कियों से यह संस्थाएं किस प्रकार से संपर्क करती हैं। विवाह प्रमाण पत्र के लिए फर्जी दस्तावेज बनवाने में इनका मददगार कौन है। कौन इन लड़के-लड़कियों को संरक्षण देता है तथा इन संस्थाओं के वित्तीय लेन-देन की भी जानकारी की जाए। कोर्ट ने संस्थाओं द्वारा शादी करवाने के लिए ली जाने वाली फीस (दक्षिणा) की जानकारी भी कराने का निर्देश दिया है। पुलिस कमिश्नर को अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के समक्ष अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

मानसी व अन्य सहित 42 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने यह आदेश दिया। सभी याचिकाओं में एक ही जैसे प्रकरण थे। इन सभी याचियों का कहना था कि उन्होंने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की है। वह बालिग है, उनकी जान को खतरा है। इसलिए उनको सुरक्षा मुहैया कराई जाए। याची मानसी ने आर्य समाज संस्थान नवाब युसूफ रोड सिविल लाइंस प्रयागराज जो कि पंजीकृत संस्था और आर्य प्रतिनिधि सभा लखनऊ से संबद्ध होने का दावा करती है, से शादी करके कोर्ट में विवाह प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया।

कोर्ट ने कहा कि इन सभी याचिकाओं में प्रयागराज के विभिन्न मोहल्ले में स्थित आर्य समाज व अन्य नाम से चल रही संस्थाओं से विवाह प्रमाण पत्र लिया गया है। यह सभी संस्थाएं पंजीकृत और आर्य प्रतिनिधि सभा लखनऊ से संबद्ध होने का दावा करती हैं। कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने जब इन संस्थाओं द्वारा जारी प्रमाण पत्रों का सत्यापन किया तो पता चला कि विवाह बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत जाकर कराए गए हैं। उनके साथ जो दस्तावेज लगाए गए हैं, विशेष कर आधार कार्ड फर्जी पाए गए। नोटरी पर दिया गया शपथ पत्र भी फर्जी पाया गया। याचियों के नाम और पते भी गलत पाए गए। विवाह पंजीकरण अधिकारी इन्हीं फर्जी दस्तावेजों पर विवाह का पंजीकरण कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के विवाहों से मानव तस्करी और यौन उत्पीड़न तथा बंधुआ मजदूरी को बढ़ावा मिलता है। सामाजिक असुरक्षा के कारण नाबालिग भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक सदमे का शिकार होती हैं। कोर्ट ने विवाह कराने वाली इन संस्थाओं की विस्तृत जांच में पुलिस कमिश्नर को स्वयं निगरानी करने का निर्देश दिया है तथा कहा है कि अगली सुनवाई पर वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में उपस्थित रह सकते हैं।

(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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