—आप मतदान करने जाते हैं तो जो स्याही हाथ में लगती है, क्या आपने सोचा है कि ये कहां बनी
वाराणसी,06 सितम्बर (Udaipur Kiran) । जब आप मतदान करने जाते हैं तो जो स्याही हाथ में लगती है क्या आपने सोचा है कि ये कहाँ बनी?। यह अमिट स्याही सीएसआईआर के लैब में बनी और आज भी प्रासंगिक है । यह बातें शुक्रवार को विज्ञान पत्रिका विज्ञान प्रगति के संपादक और सीएसआईआर के वैज्ञानिक डॉ. मनीष मोहन गोरे ने कहीं। अवसर रहा हिन्दी प्रकाशन समिति की ओर से बीएचयू जंतु विज्ञान के एस पी रॉय चौधरी सभागार में आयोजित कार्यशाला का। डॉ. गोरे ने कहा कि विज्ञान दो रूपों में प्रचलित है, पहला अनुसंधान, दूसरा शिक्षकों द्वारा लेकिन इन विधियों में विज्ञान जन-जन तक नहीं पहुंचता है। विज्ञान को सामान्य जनता तक पहुंचाने में संचार माध्यमों का बड़ा योगदान है। इसलिए वैज्ञानिकों को अपना शोध प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यमों से लोगों तक पहुँचाने में कोई गुरेज़ नहीं करना चाहिए। जो लोग जादू भी दिखाते हैं उसके पीछे विज्ञान ही छिपा होता है । उन्होंने इससे संबंधित नटराजन बनाम चिकमंगलूर पुलिस के रोचक केस को बताया। इसके अलावा उन्होंने विज्ञान से संबंधित कई महत्वपूर्ण बाते छात्र-छात्राओं को बतायीं। उन्होंने कार्यशाला में कई हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग कराया और विद्याथियों को क्लिष्ट विज्ञान को कैसे सरल भाषा में लिखा जाय को विभिन्न उदाहरणों से समझाया। डॉ. ऋचा आर्य ने अतिथि परिचय दिया। उन्होंने बताया कि डॉ. मनीष गोर सीएसआईआर में वैज्ञानिक व सहायक प्राध्यापक हैं। उन्होंने वनस्पति विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है। सीएसआईआर निस्पर में वह विज्ञान संचार विभाग के अध्यक्ष हैं। डॉ. मनीष 15 वर्ष की आयु से ही विभिन्न माध्यमों में लेखन का कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2021 में उन्हें राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 2016 में उन्हें प्यारेलाल विज्ञान लेखन सम्मान 2015 में शिक्षा पुरस्कार 2013 में शताब्दी सम्मान पुरस्कार प्राप्त हुआ। कार्यशाला का संचालन डॉ. चंद्र शेखर पति त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन समिति के समन्वयक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने किया।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी