प्रयागराज, 05 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मैनपुरी में जूनियर डिवीजन सिविल जज और फास्ट ट्रैक कोर्ट डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा लिए गए फैसलों पर आश्चर्य व्यक्त किया और सुझाव दिया कि दोनों जजों को आगे से प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
यह टिप्पणी शैलेंद्र उर्फ शंकर वर्मा द्वारा विवादित सम्पत्ति मामले के सम्बंध में हाईकोर्ट में दायर दूसरी अपील पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने किया। न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र ने हाईकोर्ट में दाखिल द्वितीय अपील के सिविल मुकदमे में शामिल मैनपुरी सिविल कोर्ट के फैसलों की समीक्षा की।
हाईकोर्ट ने जूनियर डिवीजन सिविल जज द्वारा केस में दाखिल प्रतिवादों को ठीक ढंग समझने के तरीके के बारे में स्पष्ट रूप से समझ की कमी देखी। हाईकोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक था कि बचाव पक्ष ने दो गवाह पेश किए, जिनकी गवाही पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया गया, जो परीक्षण प्रक्रियाओं में सम्भावित चूक का संकेत देता है।
कोर्ट ने पाया कि सिविल कोर्ट के फैसले में न तो वादी के दावे और न ही प्रतिवादों को ठीक से सम्बोधित किया गया। जिससे निष्कर्ष निरर्थक प्रतीत होते हैं। कोर्ट ने कहा कि फैसले के अनुसार प्रस्तुत तर्कों पर उचित विचार किए बिना प्रतिवादी के मुकदमे को खारिज कर दिया गया।
मैनपुरी कोर्ट के कमरा नंबर दो के जिला न्यायाधीश का प्रदर्शन भी उतना ही आश्चर्यजनक था, जो कार्यवाही को सही ढंग से समझने में विफल रहे। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसा लगता है कि दोनों अदालतें सिविल न्यायालयों के रूप में अपने कर्तव्यों को सम्पादित करने में विफल रही हैं। बिना उचित कारण केवल निर्णय लिखने की औपचारिकताएं पूरी कर रही हैं। हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी करते हुए आगे की सुनवाई के लिए दूसरी अपील स्वीकार कर ली है और विरोधियों को नोटिस जारी किया है।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे