HEADLINES

हाईकोर्ट का आदेश- तलाक के लिए पति अथवा पत्नी के पागलपन साबित करने का भार मांग करने वाले पक्ष पर होगा

इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज, 02 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पति या पत्नी के पागलपन के कारण विवाह विच्छेद की मांग की जाती है तो विवाह विच्छेद की मांग करने वाले पति-पत्नी को दूसरे पति-पत्नी के मामले में इस तरह के पागलपन के अस्तित्व को साबित करना होगा।

दोनों पक्षकारों के बीच विवाह 2005 में सम्पन्न हुआ और वे जनवरी 2012 से अलग-अलग रह रहे हैं। अपीलकर्ता पति ने पत्नी पर पागलपन और क्रूरता का आरोप लगाते हुए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की। अपीलकर्ता पति ने अपनी पत्नी के कथित पागलपन को साबित करने के लिए दस्तावेजी सबूत के तौर पर डॉ एस.बी. जोशी की मेडिकल जांच रिपोर्ट और नुस्खे पेश किए। प्रतिवादी पत्नी ने यह दिखाने के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ अन्य दस्तावेजी और मौखिक सबूत भी पेश किए कि वह अच्छी तरह से शिक्षित है।

ट्रायल कोर्ट ने पागलपन के बारे में सबूतों की कमी के आधार पर तलाक की याचिका खारिज कर दी। पति ने एडिशनल जिला जज, फतेहपुर के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में फर्स्ट अपील दाखिल की थी।

विक्षिप्तता को तलाक का आधार बनाने वाले अधिनियम की धारा 13(1)(3) का अवलोकन करते हुए जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की खंडपीठ ने कहा, “अपीलकर्ता पर यह साबित करने का भार था कि प्रतिवादी असाध्य रूप से मानसिक रूप से अस्वस्थ थी या वह ऐसी मेडिकल स्थिति से पीड़ित थी, जिसे निरंतर या रुक-रुक कर होने वाले मानसिक विकार के रूप में वर्णित किया जा सकता है। जिसमें अपीलकर्ता से प्रतिवादी के साथ रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।“

हाईकोर्ट ने पाया कि अधिनियम की धारा 13(1)(3) स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है कि मानसिक बीमारी क्या होती है। “मेडिकल बीमारी जिसमें दिमाग का विकास रुक जाता है या अधूरा रह जाता है, मनोरोगी विकार या सिज़ोफ्रेनिया सहित दिमाग का कोई अन्य विकार या विकलांगता होती है।“ मनोरोगी विकार की आगे की परिभाषा भी प्रदान की गई। यह देखते हुए कि धारा के तहत मानसिक बीमारी साबित करने की आवश्यकताएं सख्त हैं। न्यायालय ने माना कि पति ने कभी यह साबित करने का प्रयास नहीं किया कि उसकी पत्नी का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है और यही कारण है कि पति को उससे दूर रहना पड़ा। कोर्ट ने कहा कि यह देखा गया कि पति ने खुद कहा था कि कथित बीमारी ठीक हो सकती है।

न्यायालय ने आगे कहा कि पति शिव सागर ने प्रतिवादी पत्नी के पागलपन को साबित करने के लिए कोई विशेषज्ञ राय या मेडिकल जांच रिपोर्ट रिकॉर्ड पर नहीं लाया। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पक्षकारों ने सात साल तक सामान्य वैवाहिक सम्बंध बनाए और पत्नी की कथित पागलपन के बारे में ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों पर संदेह करने के लिए कोई सबूत नहीं था। तदनुसार, पति द्वारा दायर अपील खारिज कर दी गई।

————-

(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

Most Popular

To Top