धर्मशाला, 2 सितंबर (Udaipur Kiran) । निर्वासित तिब्बतियों ने सोमवार धर्मगुरु दलाई लामा की नगरी मैक्लोडगंज में तिब्बती लोकतंत्र दिवस की 64वीं वर्षगांठ मनाई। समारोह में एस्टोनिया देश का संसदीय प्रतिनिधिमंडल शामिल रहा। मैकलोडगंज में मुख्य बौद्ध मंदिर चुगलाखांग में आयोजित समारोह में एस्टोनियाई संसद में तिब्बत समर्थन समूह के अध्यक्ष सांसद जुकु-काले रेड के नेतृत्व में एस्टोनियाई संसदीय प्रतिनिधिमंडल यहां पंहुचा था। कार्यक्रम की शुरुआत तिब्बती राष्ट्रगान के साथ हुई, जिसके बाद सिक्योंग पेंपा सेरिंग और संसद स्पीकर खेंपो सोनम तेनफेल ने काशाग और निर्वासित तिब्बती संसद के बयान पढ़े। इस संदेश में दुनिया भर में धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने और निर्वासन में तिब्बती लोकतांत्रिक राजनीति के विकास के लिए तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा की महान प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया। बयानों में तिब्बत के अंदर चल रहे दमन को भी उठाया गया।
तिब्बती लोकतंत्र स्थापना की 64वीं वर्षगांठ निर्वासित तिब्बती संसद मना रहा है। दो फरवरी 1960 को बौद्धों के प्रमुख तीर्थ स्थल बोधगया में जब तीनों प्रांत और भिन्न धार्मिक संप्रदाय के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ, तब उसमें तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के आदेश-विचारों के साथ पूरी क्षमता के साथ चलने की प्रतिज्ञा ली। उसी समय परम पावन ने पूर्व लंबित तीनों प्रांत और भिन्न धार्मिक संप्रदाय के अपने अपने प्रतिनिधियों को बनाये जाने की आदेशानुसार सर्वप्रथम निर्वासन में तिब्बती सांसदों को परमपावन की ओर हस्ताक्षरित स्थापित किये गये। दो सितंबर, 1960 को कार्य की उत्तरादायित्व का शपथ लेने के बाद से तिब्बती लोकतंत्र पर्व को मानते हुए अब तक 64 वर्ष पूरे हो गये। आज तिब्बतियों के लिये एक विशेष दिन है।
उत्कृष्ट शिक्षकों और शोधार्थियो को किया सम्मानित
तिब्बती लोकतंत्र के अवसर पर न्याय आयुक्त तेनजिन लुंगटोक ने इस वर्ष के कक्षा 12 के गदेन फोडरंग और शैक्षणिक उत्कृष्टता पुरस्कार के प्राप्तकर्ताओं को पुरस्कार और प्रमाण पत्र प्रदान किए। इसी तरह, सिक्योंग पेंपा सेरिंग ने चार सीटीए कर्मचारियों को उनकी 25 साल की सेवा के लिए मान्यता पुरस्कार प्रदान किए और स्पीकर खेंपो सोनम तेनफेल ने 16 तिब्बती पीएचडी छात्रों को मानद पुरस्कार प्रदान किए। इस अवसर पर उपस्थित लोगों का मनोरंजन करने के लिए पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए।
गौरतलब है कि इसी दिन 2 सितंबर, 1960 को सर्वप्रथम तिब्बती लोगों की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना हुई। उसी के साथ निर्वासन में पहली तिब्बती संसद के सदस्यों ने पद की शपथ ली। उस समय, परम पावन दलाई लामा ने तिब्बती लोगों के वर्तमान और भविष्य के दीर्घकालिक कल्याण की उद्देश्यों के साथ, अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया, जिससे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि तिब्बती सरकार का राजनीतिक चरित्र निर्वासन में अहिंसा की विचारधारा पर आधारित होना चाहिए।
1963 में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने तिब्बत के संविधान की घोषणा की गई। बाद में, 21 नवंबर, 1974 को निर्वासन में तिब्बती संसद के सदस्यों के चुनाव के नियमों को अपनाया गया और कार्यान्वयन के लिये घोषित किया गया। वर्ष 1991 में तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने निर्वासन में तिब्बती संसद को तिब्बती लोकतांत्रिक व्यवस्था की विधायी शाखा बनने के लिए एक पूर्ण क़ानून बनाने वाली संस्था में बदलकर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन को लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया। इस दौरान निर्वासित तिब्बती सरकार के सिक्योंग पेंपा सेरिंग सहित तिब्बती सांसदों और अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।
(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया