झज्जर, 2 सितंबर (Udaipur Kiran) । आठ साल की छोटी उम्र में मारा लकवा, बिना कोच के किया अभ्यास। टोक्यो पैरालंपिक में ‘चांदी’ जीतने के साथ ही पेरिस में भी जीतने का ले लिया था संकल्प। टोक्यो की जीत को पेरिस में सफलता के लिए माना था प्रेरणा। रजत जीतने की खुशी की लहर पैरालिंपिक खिलाडी योगेश के पैतृक नगर बहादुरगढ़ में तेजी से फैल गई।
आठ साल की उम्र में लकवाग्रस्त होने वाले योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक में देश को रजत पदक दिलाकर अपने संकल्प को सच भी साबित कर दिखाया। उन्होंने पुरुषों की चक्का फेंक स्पर्धा के एफ56 वर्ग में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए इस बार भी सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया।
बहादुरगढ़ में बराही रोड स्थित राधा कॉलोनी के मूल निवासी योगेश के लिए बचपन आसान नहीं था। आठ साल की छोटी सी उम्र में ही उन्हें लकवे का शिकार होना पड़ा। इस झटके के बाद भी उन्होंने अपने सपनों से समझौता नहीं किया। योगेश हमेशा बड़े-बड़े सपने देखते थे। स्कूल के दिनों में उन्हें कोचिंग की सुविधाएं नहीं मिली। सुविधाओं की कमी के कारण उन्हें अपने कौशल और प्रदर्शन में सुधार करने में कठिनाई हुई। माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद योगेश कथुनिया ने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला लिया। अपने कॉलेज के दिनों में कई कोचों ने उनके कौशल पर ध्यान दिया। उन्होंने जल्द ही जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में कोच सत्यपाल सिंह के संरक्षण में सीखना शुरू कर दिया। अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक संघ के अनुसार, योगेश ने 2019 में दुबई विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की डिस्कस थ्रो एफ56 स्पर्धा के फाइनल में कांस्य पदक जीतकर टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया। योगेश ने अपने छठे प्रयास में 42.51 मीटर का थ्रो किया था।
योगेश ने 2018 में बर्लिन में आयोजित पैरा-एथलेटिक्स ग्रां प्री में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने पुरुषों के डिस्कस एफ36 वर्ग स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड तोड़ा। उन्होंने 45.18 मीटर का थ्रो किया और चीन के कुइकिंग के 42.96 मीटर के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ दिया,जो उन्होंने साल 2017 में हासिल किया था। इसके अलावा उन्होंने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की डिस्कस थ्रो एफ56 श्रेणी स्पर्धा में 42.05 मीटर के थ्रो के साथ रजत पदक भी जीता। टोक्यो पैरालिंपिक में चांदी होने के बाद योगेश की इस बार पेरिस पैरालिंपिक में भी चांदी रही है। पेरिस में योगेश की जीत पर बहादुरगढ़ में उनके दादा हुकमचंद, दादी सावित्री देवी, पिता ज्ञानचंद, चाचा प्रेमचंद व कर्मवीर, मां मीना देवी, बहन पूजा व आरती के अलावा चाची शर्मिला व इंदूरानी समेत तमाम लोगों ने योगेश की शानदार उपलब्धि पर खुशी जताई। दादा हुकंचन्द बोले, पोते ने एफ 56 में जीतकर उनका सीना 56 इंच का चौड़ा कर दिया।
मात्र आठ वर्ष की आयु में ही पैरालाइज होने से चलने-फिरने में भी लाचार रहे अपने बेटे के अरमानों को ऊंची उड़ान देने वाले सेना से ऑनरेरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए पिता ज्ञानचंद ने बताया कि बेटा सुबह साढ़े तीन बजे उठकर ही अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़े अभ्यास में जुट जाता था। योगेश के पिता ज्ञानचंद ने बेहतर खेल नीति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया।
(Udaipur Kiran) / शील भारद्वाज