कुशीनगर, 2 सितंबर (Udaipur Kiran) । कुशीनगर जिले कसया के चकदेंइया गांव में समूह के कर्ज से डूबे अवसादग्रस्त एक किसान ने गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। उसकी पत्नी अपने तीन बच्चों के साथ बीते तीन माह से किसी अज्ञात स्थान पर रह कर गुजर-बसर कर रही है। ग्रामीणों का कहना है कि समूह वालों का कर्ज नहीं दे पाने के कारण वह बच्चों के साथ यहां से चली गई। किसान भी मकान के मुख्य दरवाजे पर ताला लगाकर अपने ही घर में छिपकर रहते थे। शव को कब्जे में लेकर पुलिस जांच पड़ताल कर रही है। 45 वर्षीय हरिशंकर वर्मा की जीविका खेती-किसानी और मजदूरी पर टिकी थी। वह वाहन चालक भी थे। ग्रामीणों की मानें तो आर्थिक तंगी से जूझ रहे इस परिवार ने छह माह पूर्व कई समूह से ऋण लिया था। कुछ किस्त तो जमा हुआ पर ज्यादा बाकी रह गया। समूह वालों ने ऋण का भुगतान करने के लिए दबाव बनाया तो तीन माह पूर्व पत्नी रंजू वर्मा अपने बड़े पुत्र अमन, पुत्री अंजली व नीतू को साथ लेकर किसी अज्ञात स्थान पर चली गई। इधर किसान वर्मा घर पर अकेले रहते थे। मकान के मुख्य दरवाजे पर हमेशा ताला बंद रहता था ताकि अगर कोई आवे तो उसे लगे कि मकान में कोई नहीं है। किसान मकान के पिछले दरवाजे से निकलकर अपना कार्य करते थे। गत शनिवार की शाम को वह खाना खाकर घर में सोने चले गए। रविवार को पूरा दिन और देर रात तक जब उनकी कोई गतिविधि नहीं मिली तो आसपास के लोगों को शक हुआ। उनका पुत्र अमन पिता के मोबाइल पर बार-बार फोन कर रहा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा था। देर रात को उसने अपने कुछ मित्रों को घर भेजा। मकान के पीछे खिड़की के रास्ते देखा गया तो वर्मा का शव फंदे से लटका हुआ है। ग्रामीणों की मौजूदगी में पुलिस ने ताला तोड़कर शव को कब्जे में लिया। ग्राम प्रधान संजीव सिंह ने कहा कि सुनने में आ रहा है कि परिवार ने कई समुहों से लोन लिया था। वसूली का दबाव बढ़ने पर पत्नी बच्चों के साथ कहीं जाकर कुछ कार्य कर जीविका चला रही है। शायद इसी दबाव में हरिशंकर ने आत्महत्या की है। प्रभारी निरीक्षक गिरिजेश उपाध्याय ने बताया कि गांव वालों के अनुसार मृतक परिवार द्वारा कुछ समूहों से ऋण लिया गया था। उसके भुगतान को लेकर परिवार काफी परेशान था। इसी बीच परिवार के मुखिया हरिशंकर का शव फंदे से लटका मिला है। मामले की जांच की जा रही है। सामने आए तथ्यों के आधार पर कार्यवाही की जाएगी।
सूदखोरों के जाल में फंसे हैं कई परिवार : मौके पर गांव के लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि कई लोग सूदखोरों और समूह के लोन के जाल में फंसे हैं। सूदखोर के ब्याज के नियम के मूल रकम एक साल में ही डेढ़ से दोगुना हो जा रही है। एक बार जो इनके चंगुल में फंस जा रहा है, उसे आसानी से निकलते नहीं बन पाता। अनेक लोग संपत्ति बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
(Udaipur Kiran) / गोपाल गुप्ता