भोपाल, 25 अगस्त (Udaipur Kiran) । मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में प्रत्येक रविवार को नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि संभावना की श्रृंखला के अंतर्गत इस बार घूमन प्रसाद पटेल, दमोह ने कानड़ा नृत्य-गायन की प्रस्तुति दी। यह लोकनृत्य बुंदेलखंड का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसमें 10 कलाकारों से सजे दल में पांच वादक और पांच गायक शामिल थे।
सारंगी और खंजरी की लोक धुनों पर कलाकार पारंपरिक वेशभूषा में इस नृत्य को करते हैं। यह नृत्य उमंग और आनन्द के साथ कुशल हस्त-पद संचालन और अपनी आदिम ऊर्जा के साथ किया जाता है। सगाई, विवाह, छठी आदि अवसरों पर यह नृत्य किया जाता है। कानड़ा नृत्य बुन्देलखण्ड की धोबी जाति का पारम्परिक नृत्य है। इस नृत्य में नर्तक-गायक हाथ में रेकड़ी वाद्य लेकर पारम्परिक गीतों का गायन करते हैं। साथ ही अन्य वादक और नर्तक मुख्य गायक का साथ देते हैं। कानड़ा गायक आशु कवि भी होते हैं, जो तात्कालिक गीत-रचना कर समयानुकूल परिस्थिति के अनुरूप गीतों की प्रस्तुति देते हैं।
वहीं, शालिनी धुर्वे एवं साथी, सिवनी ने गोंड जनजाति के भड़ौनी नृत्य की प्रस्तुति दी। यह गोंड जनजाति का पारंपरिक नृत्य है, जो विवाह और अन्य अवसरों पर किया जाता है। इस नृत्य को मुख्यतः इस समुदाय के लोग खेती के काम-काज पूर्ण होने के उपरांत करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी फसल अच्छी हो। इस नृत्य से रामरस का भाव आता है। चिटकुला, नगड़िया, ढोलक, मंजिरा लेकर कलाकार उत्साह और उमंग से इस नृत्य को करते हैं। नृत्य दल में शामिल महिलाएं 16 हाथ की साड़ियॉं पहनती हैं तो पुरुष धोती-कुर्ता पहनते हैं।
(Udaipur Kiran) तोमर / नेहा पांडे