पन्ना, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । पर्यटन एवं मंदिरों के लिए प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पन्ना प्रदेश ही नहीं पूरे देश में अपनी अलग पहचान रखता है। यहां हर उत्सव परंपरागत तरीके से मनाया जाता है। यहां भगवान बल्देव का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां आगामी 25 अगस्त को हलछठ उत्सव मनाया जायेगा। इस मंदिर में श्री बलदाऊ का विशाल प्रतिमा स्थापित है। यह दुनिया की इकलौती प्रतिमा है, जो इतनी विशाल और शालिग्रामी पत्थर से निर्मित है।
ऐतिहासिक हलछठ उत्सव बलदेव जी मंदिर में आगामी 25 अगस्त को मनाया जायेगा, जिसके लिए तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रही है। हलछठ उत्सव में मुख्यमंत्री मोहन यादव का आना प्रस्तावित है। जिसकी तैयारियों के लिए गुरुवार को कमिश्नर एवं आईजीने जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ चर्चा की। नगर के तीनों प्रमुख मंदिर, बलदाऊ, गोविंद और किशोरजी मंदिरों को आकर्षक तरीके से सजाया जा रहा है।
बल्देव मंदिर में 25 अगस्त को दोपहर 12 बजे जन्मोत्सव मनाया जाएगा। 30 अगस्त को रात 3 बजे छठ उत्सव मनेगा और इसके दूसरे दिन 31 अगस्त को रात 10 बजे से भंडारा और महाप्रसाद वितरण का कार्यक्रम होगा। इसी तरह जुगल किशोर और गोविंद जी मंदिर में 26 अगस्त की रात को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। जन्माष्टमी पर संस्कृति विभाग की ओर से जुगल किशोर मंदिर प्रांगण में शाम को भक्ति पर्व का आयोजन किया जाएगा। इसमें भगवान श्रीकृष्ण पर आधारित, भजन, संगीत और नृत्य के कार्यक्रमों की प्रस्तुति चयनित कलाकारों की टीम देगी।
दूसरे दिन 27 अगस्त को दधिकांदो कार्यक्रम दोपहर 1 से शाम 6 बजे तक होगा। इसी दिन रात को भंडारा और महाप्रसाद वितरण कार्यक्रम रात्रि 10.30 बजे से 1 बजे तक होगा। गोविंद मंदिर में भी जन्माष्टमी का कार्यक्रम 26 अगस्त को सितंबर को रात 11.30 बजे कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव का आयोजन होगा। प्राणनाथ मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव 26 अगस्त की रात को 12 बजे मनाया जाएगा।
पन्ना में भगवान हलधर का जन्मोत्सव यहां भव्य रूप से मनाया जाता है। पंडित योगेंद्र अवस्थी बताते हैं कि रुद्रप्रताप सिंह पन्ना के 10वें महाराज थे। वे भगवान बलदेव की प्रतिमा को मथुरा वृंदावन से लेकर आए थे। वहां के अलावा शेषनाग सहित हलधर की इतनी बड़ी प्रतिमा देशभर में शायद ही कहीं और हो। प्रतिमा में इतना तेज है कि इसे अधिक समय तक एकटक नहीं देख पाते हैं। हलछठ पर्व पर यहां राजशाही जमाने से ही समारोह के साथ भगवान बलदेव का जन्मोत्सव मनाने की परंपरा है। मंदिर में श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का आनंद, लंदन के चर्च का प्रतिरूपः-प्रतिमा की तरह ही यहां का मंदिर भी विशेष है। भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं पर आधारित यह मंदिर पूर्व और पश्चिम के स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। मंदिर का बाहरी हिस्सा लंदन के प्रसिद्ध सेंटपॉल चर्च का प्रतिरूप है।
इसकी डिजाइन इटली के मानचित्रकार ने तैयार की थी। मंदिर का निर्माण संवत 1933 से शुरू होकर तीन साल में संवत 1936 में पूरा हुआ था। मंदिर का प्रवेश द्वारा बुंदेली स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका सौंदर्य सहज ही लोगों को आकर्षित करता है। मंदिर से जुडे़ कुंजबिहारी शर्मा बताते हैं कि मंदिर की नट मंडप और भोग मंडप की महाराबें (किसी मंदिर के गुंबद के अंदर का हिस्सा) मध्यकालीन स्थापत्य शैली में हैं, जबकि आंतरिक सज्जा मंदिरों की तरह ही है।
भगवान श्रीकृष्ण की 16 कलाओं पर आधारित मंदिर का मंडप 16 विशाल स्तंभों पर टिका है। इसके प्रवेश और निकासी द्वार पर 16 सीढ़ियां, 16 छरोखे और 16 लघु गुंबद हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। इतिहासकार एसबी सिंह परमार बताते हैं कि पूरे भारत में इतने सुंदर मंदिर बहुत ही कम हैं। मंदिर के शिखर में सवामन (करीब 50 किलो) सोने का कलश चढ़ाया गया था। यह आज भी मंदिर के सौंदर्य में चार-चांद लगा रहा है।
(Udaipur Kiran) / सुरेश पांडे तोमर